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Tuesday, December 27, 2011

पहला ही चक्कर है - अभी और फेरे हैं .

जो ना टकराए कभी-पर्वत सुमेरों से 
उमड़ घुमड़  - गहराए ना सिन्धु की मुंडेरों से 
तटबंध ना तोड़े  जो - पवन के झकोरों से 
तूफां के मौसम में हम लहरों से खेले हैं .
  
जो मिला साथ चले - कदमो से कदम मिला  
दूर तक चले जो साथ - वो फासलों के मेले हैं .
क्या तूने - झेला है , तूने क्या सहा यार
रिश्तों की भीड़ में  - हम बिल्कुल अकेले हैं .

फुर्सत नहीं पल भर - चलना तो है हरपल
एक खेत सींचा है - अभी आगे बहुतेरे हैं .
थकना नहीं है मुझे - रुकना गंवारा कहाँ 
पहला ही चक्कर है - अभी और फेरे हैं .

सूरज की कौन कहे - चंदा भी मौन रहे .
अंधियारी रात - सारे भुवन को घेरे हैं
दीपक प्रकाश पुंज - चांदनी बिखेरे हैं
निपटना है उनसे मुझे - जो मन के अँधेरे हैं . 


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