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Friday, December 23, 2011

दिल की बात करते करते

दिल की बात करते करते  -
ये दिल हाथ से जाने लगा है .
तमाम जिन्दगी - के सफ़र
का एक एक वाकया - नजर
के सामने आने लगा है .

जीने की बात कहता हूँ -
और हर पल मर रहा हूँ -
ये मर्म आज कुछ -
ज्यादा सताने लगा है .
काश ना - आखिरी हो
ये कविता मेरी - आज
खुद पे से एतबार जाने लगा है .

फलक पर चाँद है तो सितारे भी होंगे -
आस्मां में उड़ने को -
आज जी चाहने लगा है .
ऐ मेरे मेहरबान दोस्त सुन -
बादलों ने  मुझको - चुनौती दी है
आज इनके पार जाने को
मन इतराने लगा है .





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