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Thursday, September 8, 2011

मेघ फिर से गहराए

मेघ फिरसे गहराए-
सुखी धरा - की गोद में
सावन फिर फिर -लौट आये.

काश ये ऋतू बनी रहे-
लौट के ना जाये -
कहीं से कोई भीगता हुआ  -
मेरी कल्पनाओं में
यूँही चला आये .

तुम नहीं जानते -
मैं वर्ष भर - जोहता हूँ
बाट तुम्हारी - हे मेघ
मेरी पांति - उन तक
तू ही तो पहूँचाये .





2 comments:

  1. वर्ष भर - जोहता हूँ
    बाट तुम्हारी - हे मेघ ||

    खुबसूरत अंदाज भाई जी ||
    बधाई ||

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  2. बहुत सुन्दर भाव।

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