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Sunday, September 11, 2011

ना जाने क्यों - आज तुझसे मिलने को दिल चाह रहा है

ना जाने क्यों - आज
तुझसे मिलने को दिल
चाह रहा है - बता मुझे -
बुला रहा है - या तू
खुद मेरे पास आ रहा है .

चल तू ही आ जा मेरे -
दोस्त मेरे भाई -
लोगों के लिए भगवान्
मेरे लिए तो माखन चोर-
काला कृष्ण कन्हाई .
मैं जानता हूँ - मेरी बात
किसी की समझ में नहीं आई .

पर क्या करूँ - मेरे दिल में  
ये भगवान नहीं - दोस्त की
तरह रहता है - मेरी सुनता है
अपनी कहता है - बस ऐसे
ही जीवन चलता रहता है .

मैं बहूत खुश हूँ - उस को पाकर
वो बहूत प्रसन्न है -
मुझे अपना कर .
किसी का आखिर - क्या
बिगड़ जाता है - जब मेरा जिक्र
उसके साथ आता है .

नर नारायण की तरह - हम
दो दीखते जरुर हैं - पर मानले
हम अनेक नहीं - बस एक हैं. 



2 comments:

  1. शीतल झोंकें की तरह आनंदित कर गयी...
    पावन प्रस्तुति...
    सादर साधुवाद...

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