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Sunday, September 25, 2011

खुद पर रोने की वजह कुछ भी -नहीं

खुद पर रोने की वजह कुछ भी -नहीं
दूसरों पर हंसने के सौ बहाने .
कोई चाहे माने ना माने -पर
हम सचमुच में हैं दीवाने .

जरा सा बोध हो जाए - वैसे ही
जैसे कोढ़ में खाज हो जाए .
रोने बिसुरने का मौका मिले -
भले जिन्दगी बर्बाद हो जाए .

आखिर हम -बात बेबात
रोते क्यों हैं - जानते हुए की
दुख के कारण होंगे - सेंकडों 
खुश होने के बहाने हजारों .

याद रख - ख़ुशी और गम
एक ही घर से आते हैं - जो
'उस' एक ही के द्वारा -
भिजवाये जाते हैं .

विचारो तो सही हम - खुश
होकर - या दुखी होकर ज्यादा
पछताते हैं ?  खुद सोचिये -
या फिर हम बताते हैं .

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