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Friday, September 30, 2011

किसी ने कहा - क्यों लिखते हो .

किसी ने कहा - क्यों लिखते हो .
इस सड़ी गली व्यवस्था पर -
प्रेम पर ग़ज़ल - गाओ महुब्बत
के अनकहे फ़साने -
रोने बिसुरने के तो मिल जातें है  -
सेंकडों नहीं - करोड़ों बहाने .

सोचता हूँ - सभी ठीक ही तो कहते हैं .
क्या करूँ - ये आंसू तो हमारी पलकों से  -
ढलकते नहीं  हरदम ढीठ की तरह
जमें रहते हैं .

इन्हें किसी नदी- समंदर में
डाल दूं- या पूरी ताकत से
आस्मां की तरफ उछाल दूं  -पर
ऊपर उछाली हर चीज -
वापित आती तो है - धरती की
आकर्षणशक्ति - ये बतलाती तो है .

नहीं बच सकते - हर सवाल से
जो कदम कदम पर - पीछा करते हैं .
जो मुझे मरने नहीं देते - ना
खुद ही आत्म हत्या करते हैं .

कैसे असम्प्रक्त रहूँ - बताओ तो सही
इन जिन्दा सवालों को  - पहले किसी
अतल पाताल में दफनाओ तो सही .
इतने ही सुखी हो तो - वो खुश रहने
का मन्त्र मुझे भी सिखलाओ तो सही .
 

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