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Sunday, October 2, 2011

खुली आँख के सपने

दिन दहाड़े - खुली आँख के सपने
त्रिआयामी होते हैं - भले
श्वेतशाम हों - ना सही रंगीन .
जिनके टूटने का - मन में
डर नहीं होता - सच तो ये है की
रात का सपना - मर ही जाता है
कभी अमर नहीं होता .

दिन के उजाले-के सपने
सूर्य की मानिंद  - इनकी
चमक कभी फीकी नहीं होती - नहीं
कैद होते पलकों के घेरों में .
नहीं टूटते कभी नीम अंधेरों में .

ये कभी स्वयम स्फूर्त
कभी प्रयास से - और कभी
देवकृपा से सच हो जाते हैं .

   

1 comment:

  1. और कभी
    देवकृपा से सच हो जाते हैं ||
    बधाई ||
    बढ़िया प्रस्तुति ||

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