( प्रिय सुनीता पाण्डेय उर्फ़ गुडियाको सस्नेह समर्पित )
एक मासूम - छुईमुई सी लड़की
बात बात में रुठती- मनती .
खेलती साथ - कभी लड़ाई ठनती.
साथ रहे बरसों - कभी बनती बहूत
कभी बिलकुल भी नहीं बनती .
वैसे दिल के करीब तो है -
पर अब बहूत दूर रहती है .
माँ आज उसके - आगमन पर
पलके बिछा रही है .
एक नंबर की चुगलखोर -
आज मुझसे मिलने घर आ रही है .
एक मासूम - छुईमुई सी लड़की
बात बात में रुठती- मनती .
खेलती साथ - कभी लड़ाई ठनती.
साथ रहे बरसों - कभी बनती बहूत
कभी बिलकुल भी नहीं बनती .
वैसे दिल के करीब तो है -
पर अब बहूत दूर रहती है .
माँ आज उसके - आगमन पर
पलके बिछा रही है .
एक नंबर की चुगलखोर -
आज मुझसे मिलने घर आ रही है .
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