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Monday, October 17, 2011

हर ख्वाहिशों से दूर

हर ख्वाहिशों से दूर -
चुपचाप - बिलकुल अकेले
कोई मिला ही नहीं- ऐसा
जो मुझे अपने साथ ले ले.

कितने अजीब से लोग
कितनी अजीब सी दुनिया
सबकी खबर रखने वालों को
खुद की खबर कहाँ .

जिन्दगी भर - कुव्वतें नापते
तोलते रहे - सीने में
बुलंद होसलों को टटोलते रहे .
बंद दरवाज़ों को खटखटाते रहे -
खोलते रहे - अपनी कभी नहीं
जो मिला उसकी जय बोलते रहे .

पर नहीं मिला - कोई भी
अपने जैसा अक्ष - जो भाजाए
दिल को ऐसा शक्श - पर
नहीं छोड़ी चाँद को छूने की आशाएं
ना समझ में आने वाली  - वो
प्यार की भाषाएँ -परिभाषाएं .

अब कैसे कहूं - बिना कहे कैसे रहूँ
तू ही कह दे - वो सब जो कभी
कहा नहीं गया - वो दर्द के सागर
जो आज भी यहाँ वहां - सब जगह
वैसे ही लहरातें हैं - आजकल
हम अपने पांवों पर चलकर नहीं 
उसमे डूब कर अपने- अपने घर जाते हैं .




1 comment:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||

    बधाई स्वीकारें ||

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