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Wednesday, December 7, 2011

क्षणिकाएं

इस पत्ती को छोड़ दो -
इसे थोडा छांट दो .
क्या बकवास है - ये
खरपतवार हैं -यार
इन्हें तो जड़ से ही काट दो .



इन बूझते चिरागों से -
हम क्यों उम्मीदें लगाये बैठे हैं .
आप जानते हैं - घुप्प अँधेरे में
हम कबसे आये बैठें हैं .
गले थक जायेंगे - हलक पक जायेंगे
अब तो जयकारा लगाना छोड़ दो .
जिंदाबाद - कहने से बच ना पायेंगे - ये
मौत से शर्तें लगाना छोड़ दो .
शब्द नापते तोलते हैं - फिर बोलते हैं
इशारों में समझ लो - तो कुछ और बात है .

ऐसा क्या हुआ...? 
जो...ऐसा ख्याल आया ...!! 
हलक से सारी -
ख़ामोशी निकाल आया ...!!

बड़े थे हौसले दिल में - चाँद तक मन की उड़ान थी
तीर थे हाथ में - पर किसी दूजे के हाथ में कमान थी .
कभी अहसास होता है -
तू हर दम पास होता है .
कभी तू भी नहीं मैं भी नहीं -
दसों दिशाएं चुप - सारा भुवन मौन है .
सोचता हूँ फिर ये तीसरा शक्श कौन है .
ना कोई कसम थी - ना ही थी मनुहार
आखिर मैं यहाँ - क्यों चला आया यार .
सच ना सही तो - एक झूठा ख्वाब ही सही
इतना ही बहूत है मेरे जीने के लिए - यार .
अब आइनों में कोई चेहरे नहीं होते
बिके हुए लबों पे अब पहरे नहीं होते .
गलत हूँ तो बता देना मुझे - सुना है
शमशीर के जख्म अब गहरे नहीं होते .
 
 
 




 
 





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