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Wednesday, December 14, 2011

क्षणिकाएं

शब्द ये हैं कमाल के यार
प्यार से बोलो - निहाल हों जाएँ
कई खुद में सिमट जाएँ - कई
अपने -आपे से बाहर हो जाएँ .


बोल कडवे हों - मगर सच कहना
जमीं हिल जाए - पर तू डटे रहना .
मान ले तू अगर मेरा कहना  - झूठ
कहना नहीं - सच को सच कहना .


तू मेरा आज है  - 
और वो  कल था .
मेरा क्या -मैं तो 'कल'
बीता हुआ कल हो जाऊं .  


प्रकाश - की बात पर 
चाँद सूरज - तारे
सब फकीर से मौन हैं .-
तभी दीपक ने विनीत भाव
से पूछा  -  ये अँधेरा कौन है  ?


जो टूटे कौन से थे -
सितारे मौन से थे .
बात आकाश की है -
चाँद देगा जवाब .
लिखा था ख़त मिला नहीं -
है झूठ सरासर -
ये और बात है - की
तुम ना जवाब दो .

कहते हैं हर सवाल का जवाब नहीं होता
अब क्या जवाब दूं मैं - तेरे सवाल का .
एक पल - जो मिला
सदियों के गिले गए.
जज्बात के आँचल में
प्यार के पैबंद -फिर
फुर्सत से सिले गए .
किसके थे - अब याद नहीं
यहाँ ना जाने -
किस किस के हो चले .
थक जाओगे - रुक जाओ एक पल
ये जिन्दगी के रस्ते - अनंत हो चले .
चलते चलते -निरंतर इस
भूलभूलैया में हम खो चले .
रुक गया था एक पल -को
बस यूँ ही - चलूँ आगे बढूँ .
सच हो के ख्वाब हो -
ना जाने कौन हो तुम .
आओ चलें - इसी बहाने
धुप का तकिया - गर्म
लिहाफ में छिप जाये  .
या फिर - मन में बिसूरते
ग़मों को - गंगा में 'बहाने'
तो चलो चलें गंगा नहाने.
जाड़े की ठंडी - वीरान
कोहरे में लिपटी -
ठिठुरती शामें -
मन में जाने कैसे कैसे -
उजड़े से अहसास जगाती हैं.
सन्नाटे बोती सी - लबों पे
एक लाचार सी चुप्पी उगाती हैं .
एकांत - सितार सा बजेगा फिर
मन चाहा गीत गुनगुना - ना .
फिर किसी रोज बात करेंगे हम -
तू अभी यहाँ से चला जा ना .
जी खोल के हंसा मैं - खुद अपने आप पर
फिर उसके बाद - मुझ पे हंस ना पाया कोई . 
ये तेरी दुआ थी - या प्यार
जो मैं कल भी था - और
आज भी हूँ - यार .
सच हो के ख्वाब हो -
ना जाने कौन हो तुम .
 
 
  
 
 
 


 

 







2 comments:

  1. शब्द नहीं हे मेरे पास.... बहुत ही गूढ़ रचना...

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