बैसाख मास देख
तारों के हास देख
प्रकृति को पास देख
आढ़ा टेढा सा चाँद
करता परिहास देख .
आज चांदनी उदास
दिल की मत पूंछ बात
चांदनी के होते भी
जो रहते अकेले हैं .
दूर कहीं बजता है
ढोलक - मृदंग झान्ज
मद्धम स्वरलहरी में
कैसी ढली ये सांझ .
कोतुक सा करता है
जीवन - ये अजब स्वांग
निर्भय नहीं कोई भी
रातों को भौंकता स्वान .
मतवाले - पीते हैं
फिर भी वो जीते हैं
दुःख के पैवंद -यार
प्राणपन से सीते हैं .
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