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Friday, April 12, 2013

बैसाख मास



बैसाख मास देख 
तारों के हास देख 
प्रकृति को पास देख
आढ़ा टेढा सा चाँद  
करता परिहास देख . 

आज चांदनी उदास 
दिल की मत पूंछ बात
चांदनी के होते भी 
जो रहते अकेले हैं . 

दूर कहीं बजता है 
ढोलक - मृदंग झान्ज 
मद्धम स्वरलहरी में 
कैसी ढली ये सांझ .

कोतुक सा करता है 
जीवन - ये अजब स्वांग 
निर्भय नहीं कोई भी 
रातों को भौंकता स्वान .  

मतवाले - पीते हैं 
फिर भी वो जीते हैं
दुःख के पैवंद -यार  
प्राणपन से सीते हैं . 



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