जब तैरा बीच समंदर में
ये पागल मनुआ क्यों डोले .
यूँ दबे पाँव - पदचाप नहीं
चल मेरे मन होले होले .
क्या कर लेगी बेख़ौफ़ हवा
सबसे अपना अपनापन है
ये जीत हार सब व्यर्थ यार
उड़ना केवल अपना प्रण है .
जो नहीं लड़ा वो हार गया
हाथों से सब संसार गया .
सब उसको याद करेगे फिर
जो उड़ा क्षितिज के पार गया .
जो डूब गया सो डूब गया
जो तैरा उतरा पार गया .
माया का सागर भरा हुआ
जो नहीं लड़ा वो हार गया .
मुर्दा नहीं जिन्दा हूँ मैं
पर खुद पे शर्मिंदा हूँ मैं
ऐ देश मेरे तू बता -
अब क्या करूं मैं .
सिर्फ शब्द ही - बयाँ नहीं होते
ख़ामोशी भी बहूत कुछ कहती हैं .
सच तो सच है - छुपा नहीं सकते
सच बात जुबां पर आ ही जाती है .
झूंठ तो झूंठ - चाहे जैसे भी कहो
जुबां की चोरी नज़र बतला ही जाती है .
फिर किसी रोज़ कहेंगे -
तुम्हें दिल का हाल .
आज बस मौन सा -
रहने को चाहता है दिल .
लौट आये जो गए थे
लेकर फ़रियाद .
आज हाकिम ही फरियादी
लगा ना जाने क्यों .
दिल भी तरसेगा
यूँहीं अबके बरस
मेघ घिर आयेगा
बरसेगा नहीं
अबके बरस .
ये दुनिया -
गोल नहीं
त्रिकोण हैं .
आमने सामने -
हम तुम पर -
उस त्रिभुज का
वो तीसरा कौण
आखिर कौन है .
ना ही कुछ चाहिए ना कोई
मांगने की है दरकार -
तेरी चौखट पे आये हैं जरुर
मगर भिखारी नहीं हैं यार .
तिनको से चिड़िया के घोंसले तो बनते हैं
बड़े से शहतीर चाहिए देश घर बसाने को .
अब किसी और की दरकार कहाँ -
एक ही पार्टी काफी है दिल जलाने को .
छलनी नौका कैसे तरनी
बीच धार में डूब जायेगी
जैस करनी वैसी भरनी .
अभी दहाड़ा है लेकिन ये
काट कहीं हमे ना खाले
अब भी कहता हूँ मैं अम्मा
पिंजरे नए इजाद कराले .
सिंह शावक है वहीँ अडेगा
निर्भय और निशंक लडेगा
रोक नहीं अब सकता कोई
जो मन भाये वही करेगा .
गंडे और ताबीज बना ले
जो भी करना है तू करले
जो भी खाना है तू खा ले
तेरा बचना बड़ा कठिन है
चाहे मोदी से पुछवा ले .
उमस भरी है रात बिताई
पुरवाई ना शीतल आई
वायुमंडल ठहरा जैसे .
ताज़ा ताज़ा शनि गया है
मंगलमय नवदिन हो कैसे .
कुछ भी मुझे कहो
मैं बुरा मानता नहीं
हर आदमी अब बेशर्म
कहने लगा मुझे .
महंगाईयाँ बढती गयी
महंगे हुए हैं दिल .
अब मुफ्त में -
दो दो के जमाने नहीं रहे .
ना सही फूल -
काँटों का ही सृजन कर .
कल ये तेरे गुलशन के
पहरुए कहलायेंगे
आज प्रसव की -
कुछ पीड़ा सहन कर .
ये पागल मनुआ क्यों डोले .
यूँ दबे पाँव - पदचाप नहीं
चल मेरे मन होले होले .
क्या कर लेगी बेख़ौफ़ हवा
सबसे अपना अपनापन है
ये जीत हार सब व्यर्थ यार
उड़ना केवल अपना प्रण है .
जो नहीं लड़ा वो हार गया
हाथों से सब संसार गया .
सब उसको याद करेगे फिर
जो उड़ा क्षितिज के पार गया .
जो डूब गया सो डूब गया
जो तैरा उतरा पार गया .
माया का सागर भरा हुआ
जो नहीं लड़ा वो हार गया .
मुर्दा नहीं जिन्दा हूँ मैं
पर खुद पे शर्मिंदा हूँ मैं
ऐ देश मेरे तू बता -
अब क्या करूं मैं .
सिर्फ शब्द ही - बयाँ नहीं होते
ख़ामोशी भी बहूत कुछ कहती हैं .
सच तो सच है - छुपा नहीं सकते
सच बात जुबां पर आ ही जाती है .
झूंठ तो झूंठ - चाहे जैसे भी कहो
जुबां की चोरी नज़र बतला ही जाती है .
फिर किसी रोज़ कहेंगे -
तुम्हें दिल का हाल .
आज बस मौन सा -
रहने को चाहता है दिल .
लौट आये जो गए थे
लेकर फ़रियाद .
आज हाकिम ही फरियादी
लगा ना जाने क्यों .
दिल भी तरसेगा
यूँहीं अबके बरस
मेघ घिर आयेगा
बरसेगा नहीं
अबके बरस .
ये दुनिया -
गोल नहीं
त्रिकोण हैं .
आमने सामने -
हम तुम पर -
उस त्रिभुज का
वो तीसरा कौण
आखिर कौन है .
ना ही कुछ चाहिए ना कोई
मांगने की है दरकार -
तेरी चौखट पे आये हैं जरुर
मगर भिखारी नहीं हैं यार .
तिनको से चिड़िया के घोंसले तो बनते हैं
बड़े से शहतीर चाहिए देश घर बसाने को .
अब किसी और की दरकार कहाँ -
एक ही पार्टी काफी है दिल जलाने को .
छलनी नौका कैसे तरनी
बीच धार में डूब जायेगी
जैस करनी वैसी भरनी .
अभी दहाड़ा है लेकिन ये
काट कहीं हमे ना खाले
अब भी कहता हूँ मैं अम्मा
पिंजरे नए इजाद कराले .
सिंह शावक है वहीँ अडेगा
निर्भय और निशंक लडेगा
रोक नहीं अब सकता कोई
जो मन भाये वही करेगा .
गंडे और ताबीज बना ले
जो भी करना है तू करले
जो भी खाना है तू खा ले
तेरा बचना बड़ा कठिन है
चाहे मोदी से पुछवा ले .
उमस भरी है रात बिताई
पुरवाई ना शीतल आई
वायुमंडल ठहरा जैसे .
ताज़ा ताज़ा शनि गया है
मंगलमय नवदिन हो कैसे .
कुछ भी मुझे कहो
मैं बुरा मानता नहीं
हर आदमी अब बेशर्म
कहने लगा मुझे .
महंगाईयाँ बढती गयी
महंगे हुए हैं दिल .
अब मुफ्त में -
दो दो के जमाने नहीं रहे .
ना सही फूल -
काँटों का ही सृजन कर .
कल ये तेरे गुलशन के
पहरुए कहलायेंगे
आज प्रसव की -
कुछ पीड़ा सहन कर .
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