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Saturday, July 20, 2013

मुमताज़ है ना ताज़ है

मुमताज़ है ना ताज़ है 
ना मित्र ना हमराज़ है .
फुकरे सभी बैठें  यहाँ 
कुछ काम है ना काज़ है .

टूटी हैं दोनों टाँग अब 
बैसाखियों पर देश है -
देसी यहाँ दारु है बस 
और फिरंगी परिवेश है .

हम आम हैं ना ख़ास है
कहने को अपना राज़ है .
हर चीज दुर्लभ है यहाँ
महगाईय ही बस पास हैं .

कहते हैं सब सरकार है
हमसे ना सरोकार है -
हम बीच हैं मझधार में
हम आर हैं - वो पार है .

कहने को जिन्दा हैं यहाँ
आधार निराधार है .
बातों से दिल को जीतते
भाषण जो धुआंधार है .

इक आस है - 'मत' पास है
जिससे हमें कुछ आस है
फिर टांग देंगे 'इनको' हम
खूँटी हमारे पास है .

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