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Monday, July 29, 2013

मुक्तक


वो तेरा रूठ जाना - 
मान जाना .
छिटक कर दूर होना 
पास आना .
ये मन के खेल थे 
कोई जाना भी -
और कोई नहीं जाना .

चुप नहीं था - इज़हार किया था मैंने 

सच में तुमसे ही प्यार किया था मैंने -
या खुदा कुछ तो एतबार कर लिया होता
काश खामोश निगाहों को पढ़ लिया होता .

ज़माना जान जाए - इससे पहले 

हाले दिल जान लेते तो अच्छा था .

गम अच्छे हैं - खुशियों के पायदान बहूत हैं 

शहर में तुझको छोड़ - मेरे कद्रदान बहूत हैं .

मेरे दिल की तुझे - कहीं से 

थोड़ी सी खबर आती तो होगी .
मेरे घर से तेरे घर को यार - कोई 
सीधी सड़क जाती तो होगी .

ये बेबसी का बाज़ार - 

परेशानों का हुजूम .
माल बिकता है सस्ता 
बोलो क्या खरीदोगे .

कोई वादा ना कोई तकरार 

क्या इसी को कहते हैं प्यार . 
मान जाना भी महूब्ब्त होगा 
रूठ जाना भी महूब्ब्त है यार .

अपने अनकहे जज्बात सब वापिस ले लो 

मैंने पहले ही कहा था शब्दों से मत खेलो .

जाने क्यों याद आता है वो और उनका रूठ जाना 

उसने क्यों कहा था हमें इस कदर ना आजमाना .

बड़े चुपचुप से वो - हम रफा दफा से हैं 

लगता है हमसे वो कुछ कुछ खफा से हैं .

कोई जीते - कोई हारे 

कोई पिट ले - कोई मारे .
कभी मायूस - दोनों ही 
ना वो जीते ना हम हारे .

फटी हैं एडियाँ यारो 

थके हैं पाँव चलचल कर .
कोई अब तो बतादे ये यार - 
मंजिल दूर कितनी है .

खरीदोगे बताओ - 

बेच दूंगा यार सस्ते में 
मसीहे - देश के यारो 
सलीबों पर चढाने हैं .

ना हिन्द ना हिंदी -

ना हिन्दू ही यहाँ यारो 
ना जाने मुल्क ये अपना 
अपनासा नहीं लगता .

कभी तो चुप रहो यारो -

जरा खामोश हो जाओ 
हमें ये रोज़ की चिकचिक 
जरा अच्छी नहीं लगती .

सिमटना ही सही होगा . 

बिखरकर कुछ नहीं मिलता .
आँधियों में उड़े पत्ते - 
नहीं फिर लौट कर आते .

बेहतर तो यही है -

मेरे होकर तो देखिये .
अनमोल बहूत हूँ -
कभी खोकर तो देखिये . 

कोई साकिया - ना ही जाम है .

ना सुबह सी है ना ये शाम है .
ये अपने नसीब की बात है 
जहाँ दिन ढला वहीँ रात है .

इश्क तुझसे - 

या खुदा से यार - 
शर्त है -
जो भी पहले मिल जाए .

कोई तो रास्ता होगा - कोई तो राह निकलेगी 

अँधेरी रात कहती है - सुबह बस होने वाली है .

ये मेरे शेर - शेर से नहीं लगते 

यार कुत्ते की तरह भौंकते हैं .

जो दोस्त है तो - 
किसी 
बात का ना गिला कर 
फिर उसी गर्मजोशी - 
उसी चाह से मिला कर . 

दुःख में थे - सहे 

पर कहे नहीं गए . 
सुख में भी थे - 
कहीं नहीं गए .
थोडा ज्यादा - 
या कभी कम . 
ये अश्क - 
मुझे छोड़ कर -
जाते कहीं नहीं .

मौन एक भाव है -  

शब्दों की कमी - 
या अभाव नहीं है .

जो चले गए - 

उन्हें भूल जा . 
जो जारहें हैं - 
उन्हें जाना ही था . 
मत रोक - इन्हें 
ऐ दोस्त - ये आसूं हैं 
इन्हें तो - हरहाल 
आँख में आना ही था .


मेरा आज भी - तब तक हसीं कल नहीं देता 
अगर ना सींचों तो दरख्त भी फल नहीं देता .

फूलों की बात जाने दो 

अभी तो तुम - फैंके हुए 


पत्थरों का हिसाब दो .




हूँ नहीं दूर - फिर 

किसी रोज़ चला आऊंगा 


गुजरी बहार सही - 


हर बरस लौट आऊंगा .




मंजिले दूर नहीं होती - 

वहीँ रहती हैं - बस 

रास्ते ही लम्बे हो जाते हैं .








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