एक किसान -
धरती की छाती चीरता
आशाओं के बीज बोता -
फसल काटता है .
एक प्रहरी -
बे-वजह उग आये
खरपतवारों को -
बीनता - छांटता है .
एक मजदूर -
सपनों के सूर्य में
पसीने की बाती बन
समृधि की फसल उगाता है .
एक नेता -
करता कुछ नहीं -
इन तीन स्तंभों पर
अपनी भव्य -
अट्टालिका बनाता है .
धरती की छाती चीरता
आशाओं के बीज बोता -
फसल काटता है .
एक प्रहरी -
बे-वजह उग आये
खरपतवारों को -
बीनता - छांटता है .
एक मजदूर -
सपनों के सूर्य में
पसीने की बाती बन
समृधि की फसल उगाता है .
एक नेता -
करता कुछ नहीं -
इन तीन स्तंभों पर
अपनी भव्य -
अट्टालिका बनाता है .
No comments:
Post a Comment