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Thursday, May 9, 2013

मेरा पिता गधा है .


मेरा पिता गधा है .
कभी घोडा था - तब 
बहूत तेज़ दौडा था .
पर अब मंद गति से 
थका थका - 
पीठ पर - 
हमारा बोझा 
लादे लादे - 
दुनिया जहांन में  
घूमता है 

थक भी जाए 
तो भी कभी -
कन्धा नहीं बदलता 
नीचे नहीं उतारता .
अपनी खीज - अपनी 
पीठ की गर्द कभी 
हमपर नहीं झाड़ता .

किसी से कभी 
कुछ नहीं कहता .
कभी बहूत दया आती है - 
उसके चेहरे पे 
अनलिखी बेबसी -
देखी नहीं जाती है . 

हल भी दो बैलों के 
काँधे पर चलता है - 
पर ये तो हर दिन 
खेत जोतने - 
अकेला ही निकलता है . 

जाने कब फसलें पकेंगी 
या हम कब जवान होंगे -
दाने कब घर आयेंगे .
उस दिन कह दूंगा -
बस बहूत हुआ - 
आजसे खेत जोतने 
आप नहीं - हम जायेंगे ..

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