मेरा पिता गधा है .
कभी घोडा था - तब
बहूत तेज़ दौडा था .
पर अब मंद गति से
थका थका -
पीठ पर -
हमारा बोझा
लादे लादे -
दुनिया जहांन में
घूमता है
थक भी जाए
तो भी कभी -
कन्धा नहीं बदलता
नीचे नहीं उतारता .
अपनी खीज - अपनी
पीठ की गर्द कभी
हमपर नहीं झाड़ता .
किसी से कभी
कुछ नहीं कहता .
कभी बहूत दया आती है -
उसके चेहरे पे
अनलिखी बेबसी -
देखी नहीं जाती है .
हल भी दो बैलों के
काँधे पर चलता है -
पर ये तो हर दिन
खेत जोतने -
अकेला ही निकलता है .
जाने कब फसलें पकेंगी
या हम कब जवान होंगे -
दाने कब घर आयेंगे .
उस दिन कह दूंगा -
बस बहूत हुआ -
आजसे खेत जोतने
आप नहीं - हम जायेंगे ..
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