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Thursday, May 19, 2011

कहना भी जुर्म है मगर सहना भी जुर्म है

कहना भी जुर्म है मगर सहना भी जुर्म है
खंजर के निशाँ- अब किसे जाके दिखाइए .

जब बात चल पड़ी है तो फिर पूछ किसी से
तू चुप रहे तो ठीक -ये सबको  बताइए .

आतंक का मुलाहिजा कर लीजिये तुम भी
सर एक है - तलवार दो अब किस से छिपाइए .

आगाज कुछ नहीं फिर - अंजाम  क्या होगा 
नौटंकियों में तालियाँ  खुल कर बजाइए .
(यशोमद)

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