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Tuesday, May 31, 2011

क्षणिकाएं

ये दुनिया -
पेट्रोल और
मिटटी के तेल से -
नहीं चलती.
आपसी प्रेम और मेल -
से चलती है यार .


रफ्ता रफ्ता टुकड़ों में बंट गया आइना-ए-इन्सां
कांच की किरंचों को - होशियारी से उठाया जाए .

उँगलियाँ घायल ना कहीं हो जाएँ -उठा
ध्यान से- शीशाए दिल मेरा ही तो है .

बड़ा बेगाना सा लगता है - इंडिया-ओ -हिन्दुस्तां यारो,
आने वाले हरेक मेहमाँ को-अब भारत से मिलाया जाए.

चाँद तारे - रौशनी के कंदील
विलुप्त हो जाएँ - आस्मां
में ही कहीं खो जाएँ -आँखें
चुंधिया जाए - दुनिया की .
डूबे हुए सूरज को - चलो
सागर से निकाला लाए .

डगमगाते - लड़खड़ाते हुए
क़दमों से नहीं चलता -
आओ इस देश को -
अपने हाथों में संभाला जाए .

यहाँ हिन्दू भी हैं - मुसल्मा भी क्या कहूं  ,
फकत इंसान हूँ - अब मैं कहाँ जाके रहूँ . 

सीधी सच्ची -नहीं कहानी
बात करो ना -तुम नादानी
हम चीनी ना हैं -जापानी
हम सब की है - एक जुबानी ,
हम हैं प्यारे हिन्दुस्तानी .
दूध का धुला अब यहाँ कोई नहीं 
चमकते चाँद में भी तो दाग है  - और
प्रचंड सूरज में तो हरदम जलती आग है .
देख सकते नहीं टकटकी लगा के जिसे
ये सचमुच धधकती आग का गोला है-पर 
ये चमकता सूरज - बेदाग बहूत भोला है .


 सुलझते तीर से तलवार से-
नफ़रत से रारों से .
ख़त्म हो जाते ये झगडे -कभी के
उचक ना झांकती आँखें  - कभी
इन रोज़ने-दीवारों से .
जब सब को आजमाया है -
तो इसको भी अजमा लो.
ये चूरन प्रेम रस का है -इसे
तुम फांक लो - खा लो .
बरसात में चिंगारी सुलगती नहीं -
लकड़ियाँ गीली  हैं -और चूलाह भी
अभी सुखा कहाँ  है.
जुगनू रौशनी का पर्याय नहीं है -
मेरी बात मान हर घर में -एक
माटी का चिराग जला के तो देख .
क्या पता था -की इतना उलझ जाऊँगा.
ऐसे तो उलझी ना थी ये जिन्दगी -
किसी को कैसे अब -मैं बताऊंगा .
इतनी आसानी से कैसे सुलझ जाऊँगा.










 




 

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