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Thursday, May 26, 2011

मोम के ढेर सा जिस्म गलत गया.

मोम  के ढेर सा 
जिस्म गलत गया.
जिन्दगी ठंडी बरफ थी-
नंगे पाँव दूर तक चलता गया .

अलावों की रौशनी -
भ्रम के प्रेत सी 
पास -दूर आती जाती रही .
समय की गाय -उम्र की घास 
निर्बाध गति से -खाती रही .

अकड़ती हड्डियों से - मांस
की परत प्याज के छिलकों सी
उतरती गयी - जाती रही .

किनारे की मिटटी - 
उफनती नदी की धारा -
भरभरा कर - गिराती रही .

चेहरे की लकीरें - और ज्यादा 
गहराती गयी - जिन्दगी दूर 
होती गयी -मौत पास आती गयी .

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