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Monday, May 2, 2011

ना कोई किसी का दोस्त होता है

 ना कोई किसी का दोस्त होता है
और ना दुश्मन- समय के साथ
रिश्ते भी बदलते रहते हैं .

पर नहीं बदलती मानवता
वो हमेशा - प्रेम के आवरण में
रहती है - सुन वो तुमसे क्या कहती है.
चाहो तो रख लो या -
अपने घर की जगह -पडोसी के
घर की तरफ मोड़ दो .
या धक्के खाने के लिए -उसे
पूरी दुनिया में कही भी छोड़ दो .

कौन किसका दोस्त था -
या  दुश्मन होगा - कल बताएगा
कौन तेरा साथ देगा और कौन
तुझे छोड़ कर जाएगा .

काश 'सोनी' ने ये सवाल
सौ बरस पहले पूछा होता-तो
कह देता -वो घर भी मेरा अपना है .
कैसे गिराने दूंगा वहां बम .

मेरे शहीदों का दीया -पूरे अविभाजित
हिंदुस्तान में जलता था .
मेरे घर की गली - उसकी गली से
सीधी मिलती थी -हर रास्ता
उसके घर को निकलता था .

कैसे समझाऊँ तुम्हे  - क्रांति
का रथ लाहौर से चल कर 
दिल्ली होते हुआ -
बंगाल में अंग्रेजों की -नाक के
नीचे जाके निकलता था.

सीमा की बाड़ें हट जाएँ -
जर्मनी की दीवार की तरह
गिर जाएँ - फिर देखना
दुनिया के दादाओ को भागने के लिए
पूरी दुनिया कम पड़ जायेगी .

फिर हम एक होंगे- और
देश नहीं महादेश होंगे .

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