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Monday, May 16, 2011

अकाल

ऊपर ऊपर से मत सहला ,
पल , कल , साल महीने से
मत बहला -
काल तेरे मेरे भीतर है -
उससे मिल उसे ढूँढने बाहर मत जा

काल जो हमें यहाँ लाया - जिसने
हमें जीवन दिया -इसे चलाया
और कल काल ही ले जायेगा भी -
कहाँ से हम आये -कहाँ चले जायेंगे -
हम नहीं जानते - काल जानता है .

काले पानी की सजा काटने - मर्जी
से कौन आता है - ये दुनिया नरक है
यहाँ सुख कौन पाता है.
अपने अपने पापों के अनुसार - सजा
भोगने हर कोई आता है .

कल काल है - आज की सोच
आज अ-काल है इसमें रह -
यही श्रेष्ठ है -
कल की सोचेगा तो भटक जाएगा .
आज तक कभी नहीं पहूंचेगा-
कल में ही अटक जाएगा .

रार मत ठान - उसे दुश्मन मत मान
काल तो न किसी का दोस्त है- न
दुश्मन - वो तो बस न्यायकर्ता है-
जिसकी जैसे करनी है -वैसी भरता है .

क्यों मोह पालता है - जिसे छोड़ कर जाना है
दिल उसमे क्यों डालता है - अपनी वापिसी
मुश्किल क्यों बनाता है- अरे यहाँ तो जो आता
है -वो वापिस जाता है -
यही सच है - यही शाश्वत .

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