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Friday, February 25, 2011

आइने कभी झूठ नहीं बोलते

आइने कभी झूठ नहीं बोलते -
बुत कभी सच नहीं कहते ,
क्यों की वे अब नहीं है .
पर आइने तो यहाँ वहां -
सब जगह बिखरे पड़े हैं ,
हर कही हैं .

तू मेरी आँखों में निहार
अपनी बिंदी ठीक कर-
बाल संवार.
क्यों की हम तुम -
दोनों ही आइने हैं .

व्यक्ति ताउम्र स्वयं को
आइनों में -या फिर
दूसरों में देखता है -
कभी उसके जैसा बन जाता है -
या खुद को वैसा बना लेता है .

इल्तिजा है दोस्तों - आइने
साफ़ रखो -धुल ना जमने पाए
क्या पता कोई खुद को देखने
इसमें कब चला आये .

3 comments:

  1. बहुत हि सुन्दर !
    chandankrpgcil.blogspot.com
    dilkejajbat.blogspot.com
    पर कभी आइयेगा! मार्गदर्शन कि अभिलाषा है|

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