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Monday, June 11, 2012

क्षणिकाएं

चढ़ते चढ़ते - चढ़ गए 
जन्नत की सारी सीढियाँ .
इस तरह से यार - हम 
फिर स्वर्गवासी हो गए.


वहां नहीं हैं - वो जहाँ थे
ढून्ढ रहा हूँ - कब से यार 
आखिर उस वक्त - वो 
यहाँ थे - तब हम कहाँ थे .


जोहड़ से चिकनी मिट्टी को निकाला गया 
बना के दीप - उसे फिर घर में बाला गया .
आधी रात को -जब चाँद छुट्टी कर गया 
सुबह सूरज को समंदर से निकला गया .


किसी के इंतज़ार में क्यों रुके रहिये दोस्तों 
चलना है जिसे - राह में वो खुद मिल जाएगा .


हमसफ़र वो थे - उम्र भर मैं जिनके साथ चला 
या वो जिसने मेरे बिन सफ़र शुरू किया ही नहीं .


वो कौन तेरे साथ - था जीवन की जंग में 
कौन संग जिया था तेरे - कौन संग मरा .


बिल्ली की लड़ाई - या बंदर था बहुत तेज़
इस देश को टुकड़ों में कर खाना पड़ा मुझे .
कुछ तिजोरी में डाले-और थोड़े जेब में रखे 
बाकी हवाला उंट कर भिजवाना पड़ा मुझे .


अच्छे भले सोये हुए थे - देशवासी यार 
ये अन्ना -बाबा ने इन्हें क्या सुंघा दिया .


अँधेरे पास आते जा रहें हैं - 
उजाले जलके बुझ गए कब के .


अब छोड़ मेरे दिल - सुबह होने की आस 
यहाँ अंधेरों को कोसना बिलकुल मना है .


मर ही जायेंगी तालाब की सब मछलियाँ यार 
यहाँ घुटघुट के जीने से तो मरजाना भला है .


भागते फिर रहे परेशां से - मेरे तमाम ख्वाब 
हैरत है - आँखों में बसाने को कोई तैयार नहीं .


दूर रहना उससे - मुश्किल है बहूत यार 
पर कहाँ रहिएगा - जहाँ कोई ना हो .
वो हर कहीं छुपा है - चाहे तुझको पता ना हो 
दोनों 'जहां' में कोई जगह नहीं - वो जहाँ ना हो .


खुद अपने आप से बचने की कौशिश में 
जहाँ कोई ना हो - कहीं दूर चला जाता हूँ .
मगर तकदीर की लानत देखो - जहाँ
भी जाता हूँ - वहां खुद को खड़ा पाता हूँ .


मिल ही जाते - घर से निकल जो ढूँढने जाते 
यार दुनिया में रहते हो - कोई जन्नतनशीं नहीं.


एक तेरी दुनिया थी - एक मेरी दुनिया थी
बीच ये तीसरी दुनिया - कहाँ से आ गयी यार .


जो तू नहीं तो - और सही और नहीं और 
तकदीर में आसूं थे - तू दे या कोई और .


सपने देखे तो - आँखों को धुंधलके से बचा .
भीगी आँखों से ही बरसात हुआ करती है .


जुबाँ दी हैं खुदा ने - सच 
बोलने से डरता क्यों हैं 
हलक फाड़ के चिल्ला -यार 
जीते जी मरता क्यों है .







2 comments:

  1. मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |

    पैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल ||

    --

    बुधवारीय चर्चा मंच

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  2. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी ....

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