पूर्व से निकली अकेली
ठुमकती - मंथर गति से
भौर की पहली किरण .
नभ रुपहला वस्त्र ओढ़े
आगवानी को खड़ी थी
राह में चंचल पवन .
हडबडा सब सृष्टि जागी
कालिमा उठकर के भागी
जागरण के काल में - थी
क्षीण रजनी चितवन .
और दिनकर चढ़ रहे थे
सीढियाँ दिनमान की .
है कवि की कल्पना - पर
पहल है प्रतिदान की .
और मंगलकामना संग
सुमधुर हो दिवस सबको
कह रहा हूँ - हो मुबारक
आज का दिन - आप सबको.
ठुमकती - मंथर गति से
भौर की पहली किरण .
नभ रुपहला वस्त्र ओढ़े
आगवानी को खड़ी थी
राह में चंचल पवन .
हडबडा सब सृष्टि जागी
कालिमा उठकर के भागी
जागरण के काल में - थी
क्षीण रजनी चितवन .
और दिनकर चढ़ रहे थे
सीढियाँ दिनमान की .
है कवि की कल्पना - पर
पहल है प्रतिदान की .
और मंगलकामना संग
सुमधुर हो दिवस सबको
कह रहा हूँ - हो मुबारक
आज का दिन - आप सबको.
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