कुछ और ना सही - चलो बतियाते हैं
प्यार महूब्ब्त के लम्बे चौड़े - भजन
क्रिकेट के तराने - फ़िल्मी सुर में
जोरशोर से - कनस्टर पीट-पीट के
ऊँची आवाज़ में गाते हैं .
हम बेनाम - फकीर
जिसका ना कोई - वक्त
ना परिपाटी की लकीर.
क्या हुआ जो हम - आम
आदमी हैं - और एक दम
हाशिये पे आते हैं .
एक दिन -
सरकार की मुरझाई -
कलि खिल ही जायेगी .
तेरे वोट के कीमत - तो
तुझे मिल ही जायेगी .
फ़िक्र कैसी - एक दिन
जोड़-तोड़ करके मातागाँधी
प्रधान मंत्री बन ही जायेगी .
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