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Sunday, June 3, 2012

क्षणिकाएं

भूखों मरना अभीष्ट है तो
घर में बैठे बैठे मर जाइए . 
दिल्ली को बख्श दो प्यारे - 
भीड़ मत बढाइये - तरस खाइए .
यहाँ का जुगारिया तंग - है 
पर ये सत्याग्रह का -
कौन सा ढंग हैं .


लगाने आग दिल को - मैं भी तो चला था .
चिंगारियों के जश्न में मैं ही तो जला था .


बेजुबान शब्द हैं तो क्या - ये कहानी नहीं है 
तुम कैसे यार हो -जो मेरी पीर पहचानी नहीं है .


लिपटे खड़े हैं दरख्त - खुद गलबाहियां लिए 
उतरी है सांझ - जमीं पर परछाइयाँ लिए .
इकला नहीं कोई यहाँ - हमदम हैं सभी के 
बैठी उदास तन्हाईयाँ - तन्हाईयाँ लिए .


दिल एक बार फिर वहीँ पीने के लिए चल
उन मस्त निगाहों में है शराब का सरूर .


महंगे नहीं सस्ते सही - जीने के वास्ते 
पापा मेरी आँखों को कोई ख्वाब दिला दो .


तहरीर थी झूठी - या तारीख झूठी थी 
सुनते यही हैं - हम कभी आज़ाद हुए थे .


मुझ सा अमीर आदमी - ढूंढे ना मिलेगा 
दिल के गरीब यूँ बहूत मिल जायेंगे जनाब .


इन रास्ते पर तुम जरा चलकर तो देखना 
जैसे जिया - मैंने वैसे जीकर तो देखना .


जो सोचते थे - वो ना हुआ 
जो हुआ - वो सोचा ना था .


फुर्सत तलाश करते रहे बस तमाम उम्र 
जीने की ख्वाहिशों में मर गए हम यार .


कहते जो पहले तो - हो जाता तुम्हारा 
तुम लेट हो गए - दिल मांगने में यार .


झूठे लम्बे लम्बे गीत 
पुरजोर आवाज़ में गाते रहे .
यूँ सच भी था जुबाँ पर - पर 
वो अकेले में गुनगुनाते रहे .


जिन्दगी के सौ झमेले हैं 
और हमारी तरह - ये भी 
हमसे कहीं ज्यादा अकेले हैं . 
जो अबल - लाचार या
दीन हीन हैं - फिर भी 
मैंने आजतक किसी 
जानवर को - अपने आप
मरते - आत्महत्या करते नहीं देखा .


घर के दरवाज़े - खिड़कियाँ बंद
कर दो यार ...ये पश्चिमी 
गर्म हवाएं - तेरा 
सब कुछ उड़ा ले जायेंगी .
याद रख - फिर इसके बाद 
शीतल पुरवैयाँ
फिर नहीं आएँगी .


मन पापी - तन बावरा 
कौन इसे समझाए .
सुबह निकल कर जाए है
रात घिरे ना आये .



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