इशारों में कह रहा हूँ - तुम समझ लेना
अब सबके सामने मैं - सच तो कह नहीं सकता .
ये और बात है बीती जिन्दगी तनहा - लेकिन
ये सच है - बिन तेरे मैं रह नहीं सकता .
मेरे ख़्वाबों की -
बस यही तासीर रही -
सच हुए ना कभी .
तस्वीर बस तस्वीर रही .
अपने विचारों की तरह - काश
हम भी सुंदर होते तुम्हारी तरह .
किसी के आँख के आसूं उँगलियों पे
शबनम सा उठा - कोई रोती सी पीर को
दिलासा दिला - भटकते फिर रहे क़दमों को
घर का रास्ता दिखा - फ़रिश्ता है तो
सूरज की तरह - जहाँ के सामने आ .
ठोकरों को ठोकरों पे -रख
बना वो जज्बा - जो
दुनिया तुझे सलाम करे
डरने को तो दुष्टों से भी
डरता है जहाँ - प्रेम से
याद करे - वो जिसको -
तू ऐसा काम करे .
चलो - चले फिर अपनी तनहाइयों के पास
मेरी यादों का अब तेरे पास दिल नहीं लगता .
सुख की छाया का खरीदार था - लेकिन
सही से दाम अपने वो बता नहीं पायी .
किसी की - पीर गूंगी थी - मेरे
जेहन से होते हुए - मेरे घर तक
ना जाने कैसे चली आई .
जब तुझे देखता हूँ - गुजरी बहारों में चला जाता हूँ
ख्याल आता है - काश हमसे बहारों में मिले होते .
हमारे प्यार को - आजमाओ मत
तनहा छोड़ इस कदर जाओ मत .
गर आसूं बहाना है भाग्य मेरा -
फिर मुझे इस तरह हंसाओ मत .
मेरे अपने हो - फिर भी आँखों से गिरे जाते हो .
ये कहाँ तय था - मेरी आँखों से तेरा जुदा होना
कुछ पढ़े/बिना पढ़े अनपढ़
कुछ खिलाड़ी - कुछ अनाडी.
कुछ भांड-मिरासी .
आज कल भारतीय राजनीति में
वो लोग छाये हैं -जिन्हें राजनीति की
ए बी सी डी भी नहीं आती .
गर्व करने को तेरे पास - सुन्दर अतीत है शायद
मेरे सामने - आज है जो सुन्दर बनाना है मुझे .
नदी से कोई - और नहर निकाली जाए
ये बची सूखती खेती तो बचा ली जाए .
अपने जीवन के लिए संघर्ष - तो कोई बड़ी बात नहीं
मजा जब है जब किसी और की जिन्दगी संवारी जाए .
जुबान खामोश - उसकी आँखें बहुत बोलती थी
हरेक शय को - अपनी नज़रों में खरा तौलती थी .
बात कुछ ख़ास नहीं अपना कोरा वहम निकला -
मेरा वजन भी रत्ती माशा से जरा कम निकला .
आप तुम नहीं - मुझे तू कह
जो मेरा है तो मेरा बन के रह.
बदमजा सा है ये चुप का सफ़र
पर सवाल ये है पहले बोले कौन .
खतावार थे - बैज्जत कर
जन्नत से निकाले गए .
बेटिकेट - थे सभी
कोई ईसापुर उतरा
कोई भगवान् नगर - कई
करीम गंज में जबरन उतारे गए .
जो विनीत सा सरल है
वहीचट्टान सा अटल है .
तेरे अस्तित्व में सब जगह छिपा मैं हूँ
क्या बताऊँ तुम्हें अब - कहाँ कहाँ मैं हूँ .
छेड़ने से तो डस लेता है नाग भी -
वर्ना बीन पर अपनी नचाते रहिये .
गर चोटी रखूँ तो हिन्दू -
दाढ़ी रखूँ तो मुसलमान हूँ .
इंसानियत की हदों में - खुद को
ढूँढता हूँ - आखिर मैं कहाँ हूँ .
तू मेरी बात भी सुन - अपनी बात भी कह
मत भूल तू आदमी है - अपनी हद में रह .
अब सबके सामने मैं - सच तो कह नहीं सकता .
ये और बात है बीती जिन्दगी तनहा - लेकिन
ये सच है - बिन तेरे मैं रह नहीं सकता .
मेरे ख़्वाबों की -
बस यही तासीर रही -
सच हुए ना कभी .
तस्वीर बस तस्वीर रही .
अपने विचारों की तरह - काश
हम भी सुंदर होते तुम्हारी तरह .
किसी के आँख के आसूं उँगलियों पे
शबनम सा उठा - कोई रोती सी पीर को
दिलासा दिला - भटकते फिर रहे क़दमों को
घर का रास्ता दिखा - फ़रिश्ता है तो
सूरज की तरह - जहाँ के सामने आ .
ठोकरों को ठोकरों पे -रख
बना वो जज्बा - जो
दुनिया तुझे सलाम करे
डरने को तो दुष्टों से भी
डरता है जहाँ - प्रेम से
याद करे - वो जिसको -
तू ऐसा काम करे .
चलो - चले फिर अपनी तनहाइयों के पास
मेरी यादों का अब तेरे पास दिल नहीं लगता .
सुख की छाया का खरीदार था - लेकिन
सही से दाम अपने वो बता नहीं पायी .
किसी की - पीर गूंगी थी - मेरे
जेहन से होते हुए - मेरे घर तक
ना जाने कैसे चली आई .
जब तुझे देखता हूँ - गुजरी बहारों में चला जाता हूँ
ख्याल आता है - काश हमसे बहारों में मिले होते .
हमारे प्यार को - आजमाओ मत
तनहा छोड़ इस कदर जाओ मत .
गर आसूं बहाना है भाग्य मेरा -
फिर मुझे इस तरह हंसाओ मत .
मेरे अपने हो - फिर भी आँखों से गिरे जाते हो .
ये कहाँ तय था - मेरी आँखों से तेरा जुदा होना
कुछ पढ़े/बिना पढ़े अनपढ़
कुछ खिलाड़ी - कुछ अनाडी.
कुछ भांड-मिरासी .
आज कल भारतीय राजनीति में
वो लोग छाये हैं -जिन्हें राजनीति की
ए बी सी डी भी नहीं आती .
गर्व करने को तेरे पास - सुन्दर अतीत है शायद
मेरे सामने - आज है जो सुन्दर बनाना है मुझे .
नदी से कोई - और नहर निकाली जाए
ये बची सूखती खेती तो बचा ली जाए .
अपने जीवन के लिए संघर्ष - तो कोई बड़ी बात नहीं
मजा जब है जब किसी और की जिन्दगी संवारी जाए .
जुबान खामोश - उसकी आँखें बहुत बोलती थी
हरेक शय को - अपनी नज़रों में खरा तौलती थी .
बात कुछ ख़ास नहीं अपना कोरा वहम निकला -
मेरा वजन भी रत्ती माशा से जरा कम निकला .
आप तुम नहीं - मुझे तू कह
जो मेरा है तो मेरा बन के रह.
बदमजा सा है ये चुप का सफ़र
पर सवाल ये है पहले बोले कौन .
खतावार थे - बैज्जत कर
जन्नत से निकाले गए .
बेटिकेट - थे सभी
कोई ईसापुर उतरा
कोई भगवान् नगर - कई
करीम गंज में जबरन उतारे गए .
जो विनीत सा सरल है
वहीचट्टान सा अटल है .
तेरे अस्तित्व में सब जगह छिपा मैं हूँ
क्या बताऊँ तुम्हें अब - कहाँ कहाँ मैं हूँ .
छेड़ने से तो डस लेता है नाग भी -
वर्ना बीन पर अपनी नचाते रहिये .
गर चोटी रखूँ तो हिन्दू -
दाढ़ी रखूँ तो मुसलमान हूँ .
इंसानियत की हदों में - खुद को
ढूँढता हूँ - आखिर मैं कहाँ हूँ .
तू मेरी बात भी सुन - अपनी बात भी कह
मत भूल तू आदमी है - अपनी हद में रह .
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