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Thursday, May 10, 2012

क्षणिकाएं

इशारों में कह रहा हूँ - तुम समझ लेना 
अब सबके सामने मैं - सच तो कह नहीं सकता .
ये और बात है बीती जिन्दगी तनहा - लेकिन
ये सच है - बिन तेरे मैं रह नहीं सकता .


मेरे ख़्वाबों की -
बस यही तासीर रही - 
सच हुए ना कभी . 
तस्वीर बस तस्वीर रही .


अपने विचारों की तरह - काश 
हम भी सुंदर होते तुम्हारी तरह .


किसी के आँख के आसूं उँगलियों पे 
शबनम सा उठा - कोई रोती सी पीर को 
दिलासा दिला - भटकते फिर रहे क़दमों को 
घर का रास्ता दिखा - फ़रिश्ता है तो
सूरज की तरह - जहाँ के सामने आ .


ठोकरों को ठोकरों पे -रख 
बना वो जज्बा - जो 
दुनिया तुझे सलाम करे
डरने को तो दुष्टों से भी 
डरता है जहाँ - प्रेम से 
याद करे - वो जिसको -
तू ऐसा काम करे .


चलो - चले फिर अपनी तनहाइयों के पास 
मेरी यादों का अब तेरे पास दिल नहीं लगता .


सुख की छाया का खरीदार था - लेकिन 
सही से दाम अपने वो बता नहीं पायी . 
किसी की - पीर गूंगी थी - मेरे 
जेहन से होते हुए - मेरे घर तक 
ना जाने कैसे चली आई .

जब तुझे देखता हूँ - गुजरी बहारों में चला जाता हूँ 
ख्याल आता है - काश हमसे बहारों में मिले होते .


हमारे प्यार को - आजमाओ मत 
तनहा छोड़ इस कदर जाओ मत .
गर आसूं बहाना है भाग्य मेरा - 
फिर मुझे इस तरह हंसाओ मत .


मेरे अपने हो - फिर भी आँखों से गिरे जाते हो .
ये कहाँ तय था - मेरी आँखों से तेरा जुदा होना 


कुछ पढ़े/बिना पढ़े अनपढ़ 
कुछ खिलाड़ी - कुछ अनाडी.
कुछ भांड-मिरासी . 
आज कल भारतीय राजनीति में
वो लोग छाये हैं -जिन्हें राजनीति की
ए बी सी डी भी नहीं आती . 


गर्व करने को तेरे पास - सुन्दर अतीत है शायद 
मेरे सामने - आज है जो सुन्दर बनाना है मुझे .


नदी से कोई - और नहर निकाली जाए 
ये बची सूखती खेती तो बचा ली जाए .


अपने जीवन के लिए संघर्ष - तो कोई बड़ी बात नहीं
मजा जब है जब किसी और की जिन्दगी संवारी जाए .


जुबान खामोश - उसकी आँखें बहुत बोलती थी
हरेक शय को - अपनी नज़रों में खरा तौलती थी .
बात कुछ ख़ास नहीं अपना कोरा वहम निकला - 
मेरा वजन भी रत्ती माशा से जरा कम निकला .


आप तुम नहीं - मुझे तू कह 
जो मेरा है तो मेरा बन के रह.


बदमजा सा है ये चुप का सफ़र 
पर सवाल ये है पहले बोले कौन .


खतावार थे - बैज्जत कर 
जन्नत से निकाले गए .
बेटिकेट - थे सभी 
कोई ईसापुर उतरा 
कोई भगवान् नगर - कई 
करीम गंज में जबरन उतारे गए .


जो विनीत सा सरल है 
वहीचट्टान सा अटल है .


तेरे अस्तित्व में सब जगह छिपा मैं हूँ 
क्या बताऊँ तुम्हें अब - कहाँ कहाँ मैं हूँ .


छेड़ने से तो डस लेता है नाग भी -
वर्ना बीन पर अपनी नचाते रहिये .


गर चोटी रखूँ तो हिन्दू -
दाढ़ी रखूँ तो मुसलमान हूँ .
इंसानियत की हदों में - खुद को
ढूँढता हूँ - आखिर मैं कहाँ हूँ .


तू मेरी बात भी सुन - अपनी बात भी कह 
मत भूल तू आदमी है - अपनी हद में रह .



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