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Thursday, May 10, 2012

क्षणिकाएं

कभी तू आना - मेरे घर
फुर्सत में - कभी 
जिन्दगी - तुने मुझे 
अभी ठीक से जाना ही कहाँ है .

तिजारत नहीं थी जिन्दगी - जो मुनाफे का सौदा होती
मिल गयी थी यूँही सरेराह - भटकती हुई घर ले आया 
भ्रूण थी - पाला पोसा बड़ा किया मैंने - किसे पता वर्ना 
जाने कहाँ ये किस के घर - किस कौंख से पैदा होती .

दुआ और प्यार दोनों आहिस्ता 
आहिस्ता असर करती हैं .
आजकल घंटियाँ मंदिर में नहीं 
दिल में बजा करती हैं .

तेज़ आंधी थी - अकेले मैं खड़ा था .
हौसला सच मान मुझ से भी बड़ा था .

बुझा दे फूंक मार कर - इन्हें खामोश कर डालो 
ये मरघट में दीये जलते हुए अच्छे नहीं लगते .

बस्ती की खोज थी - मैं जंगल में भटक गया 
असीम शांति देख - दिल जाने क्यों अटक गया .
यहाँ क़ानून तो है - चाहे जंगल का ही सही यार .

ख़ामोशी ओढ़ ली इस कदर 
बोलना भूल गए - शब्द लबों पे 
आते आते जाने किस तरह - 
घडी के पेंडलूम से झूल गए .

भगवान मत बना - मुझे फ़क्त इंसान रहने दे
घरमें दिलमें मत बसा - बस मेहमान रहने दे .

हमने चेहरे से परतों में उतरते हुए चहरे देखे 
दुनिया के अजब- गजब ढंग के चेहरे देखे .
गिडगिडाने का जब असर ना हुआ यारो 
उन्ही हाथों में चमकती तलवार लहरे देखे .

खुद से अच्छा - अभी तक मिला कोई नहीं 
फिर गलत क्या है - मुझ से भला कोई नहीं .
सच तो ये - है इस हमाम में हम सब नंगे हैं 
इस दुनिया में मिला -दूध का धुला कोई नहीं .

अकेले में अपनी तनहाइयाँ - भली 
कोई गुज़ारिश भी नहीं की सनम से .
वो आजायें तो ठीक है यार - वर्ना 
कोई कसम भी नहीं कसम से .

कोई ताला ना कोई 'की' है 
दिल - का दरवाज़ा 
हमेशा खुला रहता है .
बस खींचिए और खोलिए 
( जिप लगी हैं ना यार )

बड़े जतन से चुने - शब्द
बहूत देर तक तोले -
और फिर बोलें .
अफ़सोस ही - रहा
दिल को वो बोले तो -
पर जरा कम बोले .

लग रहा था - की बस 
पलकों से अब टपका .
पर आंधियां - बादलों को
कहीं दूर ले गयी .

कोई ख़ुशी नहीं - कोई गम नहीं .
वहीं जिन्दगी गुज़र गयी - जहाँ
तू तो थी - रहे हम नहीं .

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