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Sunday, June 3, 2012

क्षणिकाएं

सारे बम तो धमाका नहीं करते यार
चंद फुस्स होके भी तो रह जाते हैं -कई 
वजन में हलके होंगे - सेर नहीं अध्सेर होंगे 
तरबूज नहीं बेर होंगे - माफ़ कर देना 
पसंद जो ना आये - ऐसे ही मेरे कुछ शेर होंगे .

हद होती है - सहन करने की 
वजह होती है - कोई मरने की 
दोस्तों हमसे ये ना हो पायेगा
बाँध कर उसको रख नहीं सकता
जिसे जाना है वो तो जाएगा .

थक गया हूँ फिर भी - थोडा टहल आऊँ 
दूर की उस कल्पना के संग थोडा दूर जाऊं 
चाहता है मन मैं कोई गीत गाऊं गुनगुनाऊं
शब्द बहरे हो गए - किसे गाकर सुनाऊं .

जिधर भी देखता हूँ - उधर तुम हो 
मैं कहाँ हूँ - इसकी खबर नहीं यारो .

नाकाम सी कौशिश थी 
मगर काम कर गयी .
जीने के जज्बे को - मौत 
भी सलाम कर गयी .

मैं आज हूँ - कल ना रहूँ शायद
काश ये आज कभी कल ना हो .

याद तेरी है मेरे पास मगर - 
तू नहीं - बस यही कमी सी है 
पुरवाई सी कुछ चली तो है 
आज हवाओं में कुछ नमी सी है 
सच में ये सुबह कुछ नयी नयी सी है .

चाँदको दिनमें देखना क्या -
दिल चाहता है जल्दी रात हो .

वक्त के साथ सब कुछ बदल गया - 
मगर हम ना बदले...आज सोचता हूँ
बदल ही जाते तो अच्छा था .

पल पल रंग बदलता जग है .
प्रतिक्षण - जिसका रूप नया है .
कभी - रूप की पूरनमासी -
और कभी - सम्पूर्ण अमा है .

मैं रात भर कहता रहू और तुम सुनो 
तो ऐसी रात की मुश्किल सुबह होगी .

अब और क्या लिखें हम - सब लिख तो दिया है 
मिल जाए ख़त तुम्हें तो - फ़ौरन जवाब देना .

ये मेरे दोस्त हैं - और बाकी पडोसी हैं यार
अजनबी बनके मुझे आज तक कोई ना मिला .

अब तो - खोल दो किवाड़ दिल के यार 
बड़ी देर से कोई दरवाज़ा खटखटा रही है .

किसी ने आह कहा - किसी ने वाह कहा
समझा कोई भी नहीं - इस दिल की बात .

रुक ना पाऊंगा मैं अब - जाना होगा 
अभी किसी ने पीछे से पुकारा है मुझे .

वो हुक्काम है यार बार बार लिखते - मिटाते हैं 
हम वो हर्फ़ हैं -जो हमेशा हाशिये पर ही आते हैं .

अजनबी हैं - हमसे दिल ना लगाएं 
मौसम की तरह हैं - आये और जाएँ 

लोग आज नजरो से तोलते हैं - भांपते हैं
दरवाजे नहीं खोलते खिड़की से झांकते हैं .

मत निकलना अकेले 
इस भीड़ में तुम दोस्तों 
खोने का डर साथ लेकर
चल कोई हमदम मिले .

रौशनी के रोजने - घर अब कबूतर के बने .
ऐसे घर में क्या रहोगे - जो वीराने हो गए .
सर हिलाकर दोस्तों को दूर से मिलते हैं अब 
बहूत शिद्दत से लगा अब हम सयाने हो गए .

ख्वाबगाह होते नहीं - छत चारदीवारी ऐ दोस्त .
प्यार- प्यारी फूल क्यारी से चमन बसते यहाँ .

बिन अतिथि कक्ष के घर सजने -बनने लग गए . 
खिड़कियाँ और रोजने दीवारों में तब्दील हो गए .

सुन रहा हूँ - गौर से मैं 
अब कहो तुम . 
आज कुछ - भी ना छिपाओ 
सब कहो तुम .

वो खुदा - फिर भूल जाता है बना कर मूरतें 
उम्र जाती बीत - उसको ढूढने में ऐ खुदा .

लड़ रहें सब - छतो दीवारों की खातिर ऐ दोस्त 
'उस' जहाँ के भूतिया घर आज भी खाली पड़ें हैं .

खोल भी दो - आज पिंजड़े यारो . 
याद के पंछी - के पर झड़ने लगें हैं .

लिख रहा हूँ - इसलिए ये ख़त 
की तुम तक बात पहुंचे .
वर्ना क्यों लिखता भला - मैं 
सारी रात जाग कर ये चिट्ठियां .


अच्छे भले सोये हुए थे - देशवासी यार
ये अन्ना -बाबा ने इन्हें क्या सुंघा दिया .

बच्चे को कच्ची नींद से जगा दिया तुमने   
अब इसको चुप कराने - तेरा बाप आएगा .

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