सारे बम तो धमाका नहीं करते यार
चंद फुस्स होके भी तो रह जाते हैं -कई
वजन में हलके होंगे - सेर नहीं अध्सेर होंगे
तरबूज नहीं बेर होंगे - माफ़ कर देना
पसंद जो ना आये - ऐसे ही मेरे कुछ शेर होंगे .
हद होती है - सहन करने की
वजह होती है - कोई मरने की
दोस्तों हमसे ये ना हो पायेगा
बाँध कर उसको रख नहीं सकता
जिसे जाना है वो तो जाएगा .
थक गया हूँ फिर भी - थोडा टहल आऊँ
दूर की उस कल्पना के संग थोडा दूर जाऊं
चाहता है मन मैं कोई गीत गाऊं गुनगुनाऊं
शब्द बहरे हो गए - किसे गाकर सुनाऊं .
जिधर भी देखता हूँ - उधर तुम हो
मैं कहाँ हूँ - इसकी खबर नहीं यारो .
नाकाम सी कौशिश थी
मगर काम कर गयी .
जीने के जज्बे को - मौत
भी सलाम कर गयी .
मैं आज हूँ - कल ना रहूँ शायद
काश ये आज कभी कल ना हो .
याद तेरी है मेरे पास मगर -
तू नहीं - बस यही कमी सी है
पुरवाई सी कुछ चली तो है
आज हवाओं में कुछ नमी सी है
सच में ये सुबह कुछ नयी नयी सी है .
चाँदको दिनमें देखना क्या -
दिल चाहता है जल्दी रात हो .
वक्त के साथ सब कुछ बदल गया -
मगर हम ना बदले...आज सोचता हूँ
बदल ही जाते तो अच्छा था .
पल पल रंग बदलता जग है .
प्रतिक्षण - जिसका रूप नया है .
कभी - रूप की पूरनमासी -
और कभी - सम्पूर्ण अमा है .
मैं रात भर कहता रहू और तुम सुनो
तो ऐसी रात की मुश्किल सुबह होगी .
अब और क्या लिखें हम - सब लिख तो दिया है
मिल जाए ख़त तुम्हें तो - फ़ौरन जवाब देना .
ये मेरे दोस्त हैं - और बाकी पडोसी हैं यार
अजनबी बनके मुझे आज तक कोई ना मिला .
अब तो - खोल दो किवाड़ दिल के यार
बड़ी देर से कोई दरवाज़ा खटखटा रही है .
किसी ने आह कहा - किसी ने वाह कहा
समझा कोई भी नहीं - इस दिल की बात .
रुक ना पाऊंगा मैं अब - जाना होगा
अभी किसी ने पीछे से पुकारा है मुझे .
वो हुक्काम है यार बार बार लिखते - मिटाते हैं
हम वो हर्फ़ हैं -जो हमेशा हाशिये पर ही आते हैं .
अजनबी हैं - हमसे दिल ना लगाएं
मौसम की तरह हैं - आये और जाएँ
लोग आज नजरो से तोलते हैं - भांपते हैं
दरवाजे नहीं खोलते खिड़की से झांकते हैं .
मत निकलना अकेले
इस भीड़ में तुम दोस्तों
खोने का डर साथ लेकर
चल कोई हमदम मिले .
रौशनी के रोजने - घर अब कबूतर के बने .
ऐसे घर में क्या रहोगे - जो वीराने हो गए .
सर हिलाकर दोस्तों को दूर से मिलते हैं अब
बहूत शिद्दत से लगा अब हम सयाने हो गए .
ख्वाबगाह होते नहीं - छत चारदीवारी ऐ दोस्त .
प्यार- प्यारी फूल क्यारी से चमन बसते यहाँ .
बिन अतिथि कक्ष के घर सजने -बनने लग गए .
खिड़कियाँ और रोजने दीवारों में तब्दील हो गए .
सुन रहा हूँ - गौर से मैं
अब कहो तुम .
आज कुछ - भी ना छिपाओ
सब कहो तुम .
वो खुदा - फिर भूल जाता है बना कर मूरतें
उम्र जाती बीत - उसको ढूढने में ऐ खुदा .
लड़ रहें सब - छतो दीवारों की खातिर ऐ दोस्त
'उस' जहाँ के भूतिया घर आज भी खाली पड़ें हैं .
खोल भी दो - आज पिंजड़े यारो .
याद के पंछी - के पर झड़ने लगें हैं .
लिख रहा हूँ - इसलिए ये ख़त
की तुम तक बात पहुंचे .
वर्ना क्यों लिखता भला - मैं
सारी रात जाग कर ये चिट्ठियां .
अच्छे भले सोये हुए थे - देशवासी यार
ये अन्ना -बाबा ने इन्हें क्या सुंघा दिया .
बच्चे को कच्ची नींद से जगा दिया तुमने
अब इसको चुप कराने - तेरा बाप आएगा .
ये अन्ना -बाबा ने इन्हें क्या सुंघा दिया .
बच्चे को कच्ची नींद से जगा दिया तुमने
अब इसको चुप कराने - तेरा बाप आएगा .
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