आओ यज्ञाग्नि में समिधा डालें
अग्नि प्रज्वलित हो - और भड़के
चिंगारी को दिलों में शोला बना लें .
भस्माभूति हो जाएँ हमारी
राक्षसी प्रवर्तियाँ - विकार
मानवीय संवेदनाओं को
जगह दें - दिल में बसा लें .
बहूत हुआ - अब ना हो
ये डर के प्रेत से मुक्त हों
स्वछन्द - मुक्त हठ योग
नहीं - अपने विलुप्तप्राय
संस्कारों को फिर से जगा लें .
ये वर्ष कुछ अद्भूत अनोखा हो
घर - नगर - देश बेगाना ना लगे
भारत को - भारमुक्त करें
वक्ष से लिपटा - अपना बना लें .
अग्नि प्रज्वलित हो - और भड़के
चिंगारी को दिलों में शोला बना लें .
भस्माभूति हो जाएँ हमारी
राक्षसी प्रवर्तियाँ - विकार
मानवीय संवेदनाओं को
जगह दें - दिल में बसा लें .
बहूत हुआ - अब ना हो
ये डर के प्रेत से मुक्त हों
स्वछन्द - मुक्त हठ योग
नहीं - अपने विलुप्तप्राय
संस्कारों को फिर से जगा लें .
ये वर्ष कुछ अद्भूत अनोखा हो
घर - नगर - देश बेगाना ना लगे
भारत को - भारमुक्त करें
वक्ष से लिपटा - अपना बना लें .
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