कलुष भरी रात - चुपके से
जा रही है - प्रकाश भरी
रुपहली सुबह मंथर गति से
रौशनी में नहा रही है .
बीत गया जो - गलत था
धीमी गति से ही यार
सही की पहचान -
हमें अब आ रही है .
बदल जाए जो ये -
विधान - गलत की
बन चूका जो पहचान -
फिर से कह सकूं - एक बार
मैं और - मेरा देश
सचमुच महान .
जा रही है - प्रकाश भरी
रुपहली सुबह मंथर गति से
रौशनी में नहा रही है .
बीत गया जो - गलत था
धीमी गति से ही यार
सही की पहचान -
हमें अब आ रही है .
बदल जाए जो ये -
विधान - गलत की
बन चूका जो पहचान -
फिर से कह सकूं - एक बार
मैं और - मेरा देश
सचमुच महान .
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