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Wednesday, December 12, 2012

क्षणिकाएँ



मैं तो हर हाल में जीने की कसम खाता हूँ 
वो नहीं जो हर - तकलीफ से घबराता हूँ .
राह के कांटे क्या बिगाड़ लेंगे मेरा - यार
वो नहीं जो सहर के अंदेशे में मरा जाता हूँ .

दिल में गर प्यार नहीं - तो ना आये कोई 
प्यार गर दिल में है तो - ना छिपाए कोई 
किसी लैला की तलाश - नहीं मजनू को 
बात कांटे की हो - तो चला आये कोई .

दिल में आता है - रूठूँ तो मनाये कोई 
जो दूर हूँ तो - आवाज़ देके बुलाये कोई .
सोगया हूँ जो तेरे ख़्वाबों में यूँहीं मैं कहीं 
झिंझोड़ कर मेरे सपने से ना जगाये कोई .

जिन्दा हूँ - तो जिन्दगी का मौह्ताज़ नहीं .
वो परिंदा नहीं जिसकी कोई परवाज़ नहीं .
मुंह में जुबाँ है तो दोस्त बोलेगी जरुर -
यार ऐसा नहीं की इस साज़ में आवाज़ नहीं .
किसी से दोस्ती नहीं - ना किसी से रार 
ठनी किसी से नहीं - ना किसी से प्यार
हरपल हरघडी जिन्दगी सफ़र में रही 
यही लगा ये जिन्दगी एक सफ़र है यार .

बड़ी अजीब सी है ये रात -
अँधेरे में छिपी हर बात - 
चाँद को यूँ तो किसी से बैर नहीं 
पर उजालों की यार आज खैर नहीं .

ये ख्याल ना जाने - कैसे तुझे आया था 
हम नहीं थे - तो कौन था आखिर 
वो जिसने - तुझे नींद से जगाया था .

बंद पिंजरे में - एक मैना 
जब भी फ़रियाद करती है . 
यक़ीनन किसी और को नहीं 
बस मुझ को याद करती हैं .

मेरे पांवों में - कोई चक्कर है 
चल चले इक नए सफ़र के लिए .

दिल चाहता है - कोई हो जो रूठे तो मनालूं 
मिलने को चला जाऊँ - या कभी उसे बुलालूँ .

हैं इतने लोग पर कोई अपना सा नहीं लगता 
कोई मासूमियत से ना जाने क्यों नहीं ठगता .

मौत को कविता ना कहो -
जाम को ठीक से भरो साकी 
अभी जिन्दगी की किताब में 
पढने को बहूत पन्ने हैं बाकी .

सफ़र तो जिन्दगी का है लेकिन 
आओ अपनी मृत्यु को सुंदर बनाएं .
बहूत रुलाया इसने - उम्रभर हमको 
चलो जाते जाते हम सबको रुलाएं .

पता नहीं हम आगे बढ़ रहें हैं की पीछे हट रहे हैं 
पतंग को ढील दे रहें हैं की मांझे लिपट रहे हैं 
जितनी भी बढ़नी थी बढ गयी यार - अब 
बाढ़ कहाँ उम्र के दरिया - सचमुच सिमट रहें हैं .

'आ राम' ढूँढ़ते रहे - आराम से बहूत 
'आया ना राम' - और सब 'आराम' से गए .

ले चल मुझे - इस अजनबी दुनिया से कहीं दूर 
अब दिल नहीं लगता घड़ीभर - इस फ़कीर का .

ना जाने किस गली से निकल आये इन्कलाब 
अब इतना आश्वस्त होके भी ना बैठिये जनाब .

भभके से आ रहे हैं  - चारों तरफ से यार 
सोचता हूँ किस तरफ की दिवार उठाई जाए .

जो तुम नहीं आते तो - सोचो क्या कमी होती 
पहले ही दिल भरा है रंजों गम से बहूत यार .

खुद अपने आप से मिलें
ना - खुलके कभी यार
ऐसी कोई फुर्सत - ना 
हमें जिन्दगी ने कभी दी .

आगाज़ भी मालूम था - अंजाम भी पता .
जो दिल नहीं माना - इसमें मेरी क्या खता .

सच तो है वो मुझे कभी मिली भी नहीं 
मिल जाती - ऐसी कौशिश थी भी नहीं .
भटकते हुए यूँहीं मिल गयी मुझको - यार 
मिली जो जिन्दगी - वो इतनी हंसी भी नहीं .

ऐ मेरी चंद लाइनों की तहरीर सुन 
इक गज़ब बात मैं तुझे बताता हूँ .
तू सदा सबसे ऊपर है - लेकिन 
मैं तो खुद हाशिये पे आता हूँ .

यूँ हमें बहूत प्यार था लेकिन 
जिदगी तुझपे एतबार था लेकिन .
एक दिन छोड़ चली जायेगी 
तय कहाँ ऐसा यार - था लेकिन .

रात में भी चैन कहाँ - मिलता है  
वो ख्वाबों में मेरे बेहिसाब आते हैं .

बनते बनते भी 
बिगड़ जाती हैं -
समेटते हैं फिर भी 
बिखर जाती हैं 
साली जिन्दगी ना हुई - 
रेत की दिवार हुई .

सच में ना आ सको तो कोई बात नहीं
कभी चुपके से आजाओ मेरे ख़्वाबों में .

कोई शिकवा नहीं किसीसे - कोई गिला भी नहीं 

की जिससे प्यार था - वो कभी मिला भी नहीं .

जगह है ही नहीं - जो तुम्हें रूकने को कहूं . 
मेरे वजूद में सच अकेला - बड़े आराम में हूँ .

वो प्यार था ही नहीं जो कभी मिला ही नहीं .
ना कोई अदावत - किसी से गिला ही नहीं . 
आदत थी यार अकेले चलने की - सच 
वो लम्बा रास्ता - कभी खला ही नहीं .

आँखें धुंधला चली लेकिन - फिर भी 
रूप की पारखी वो निगाहें आज भी हैं .
















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