चंद शब्दों से - पहले
खुद को दिलासा देता हूँ
फिर लोगों में बाँट देता हूँ
एक दीपक जलाता हूँ -
उजाला बाँट देता हूँ -
और बन जाती है -
एक कविता .
फिर देखता हूँ -
क्या अँधेरा घटा -
क्या उजाला -
घर घर में बंटा .
और - स्वयं
आत्मविभोर हो
मगन हो जाता हूँ .
कुछ भी सही - कुछ तो
कलुष कम करता हूँ -
उजाला बढाता हूँ -
दीया हूँ यार -
खुद अँधेरे में रहता हूँ
रौशनी में नहीं आता हूँ .
खुद को दिलासा देता हूँ
फिर लोगों में बाँट देता हूँ
एक दीपक जलाता हूँ -
उजाला बाँट देता हूँ -
और बन जाती है -
एक कविता .
फिर देखता हूँ -
क्या अँधेरा घटा -
क्या उजाला -
घर घर में बंटा .
और - स्वयं
आत्मविभोर हो
मगन हो जाता हूँ .
कुछ भी सही - कुछ तो
कलुष कम करता हूँ -
उजाला बढाता हूँ -
दीया हूँ यार -
खुद अँधेरे में रहता हूँ
रौशनी में नहीं आता हूँ .
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