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Saturday, December 29, 2012

क्षणिकाएं

हो भले सारी खुदाई - 
कम नहीं है .
क्या करूँ दुनिया का - 
जिसमे हम नहीं हैं .

उत्तरदायी कौन है - चल अब करें ये फैसला 
सबकी ऊँगली उठ रही है - आज खुद की ही तरफ .

दीप तो बुझ जाएगा पर रौशनी जिन्दा रहे 
आओ मिलकर - दीप से दीप जलाएं यारो .

रूकती है ठिठकती है - मगर हारती नहीं 
कोई कांग्रेसी दाव नहीं होती जिन्दगी .

दिल ना जाने मुझसे अब चाहता क्या है 
रात के सपनो का शूल अब तक गड़ा है . 
मेरा आज - मेरे बीते कल से बहूत बड़ा है 
जो आने वाले कल का हाथ थामे खड़ा है .

रुकेगा नहीं - रोका तो बहूत
सबने मिल टोका भी बहूत 
हमारा जो है रुकेगा नहीं - 
अब 'तेरा' ही आएगा जो 
किसी शय के सामने -
झुकाए से भी झुकेगा नहीं .

जब तक पीर जिन्दा है -
तब तक 'मीर' जिन्दा है .

ग़मों को छोड़ने - बहूत 
दूर मत जाना - ना जाने 
कब कमी अखरने लगे .
सुखों का क्या भरोसा - यार 
ना जाने कब तलक साथ रहें 
और कब मरने लगे .

कविता चन्द शब्दों की कलाकारी है 
भाव तेरे हैं अपनी बस अदाकारी है .
हरेक हर्फ़ - तेरी शय को बयाँ करता है 
रोशनाई मेरी - पर रौशनी तुम्हारी है .

रंज गम पास ना आये तो अच्छा है 
ख़ुशी भी दूर ना जाए तो अच्छा है 
पर कभी रूठों न अपनी ख़ुशी से . 
जो रूठ जाए ख़ुशी तो क्या है .

वो प्यार था ही नहीं - जो कभी मिला ही नहीं .
ना कोई अदावत - किसी से गिला ही नहीं . 
आदत थी यार अकेले चलने की - सच 
वो लम्बा रास्ता - कभी खला ही नहीं .

आज कुछ ठण्ड बहूत है -
चलो-अलावों को जलाया जाए 
या आज की शाम को फिर 
तेरी यादों से सजाया जाए .

वो जो सड़कों पे 'पर' साथ लिए बैठे हैं 
उड़ने को तत्पर परवाज़ लिए बैठे हैं .
एक वो हैं पिंजरे सैंयाद लिए बैठे हैं 
बड़े शातिर - हमारा आज लिए बैठे हैं .

जिन्दगी तेरे नाजो अदा - क्या कहने 
फटी बिवाइयाँ तूने कभी सिली भी नहीं .
बहूत ढूंडा तुझे दिन रात - जिन्दगी 
तू मिली भी और कभी मिली भी नहीं .

तमाम उम्र नफरतों के सर्द सायों में रहे 
प्यार की हरारत यूँ कभी मिली ही नहीं .

दूर से इशारों में बात होती रही - हर बार 
कभी करीब से ये जिन्दगी मिली ही नहीं .

प्रेमका रोग लगे तो - मर्ज कभी ठीक ना हो 
रिस्ते जख्मों की अपनी ही कसक है यारो .

बात कुछ ख़ास नहीं है - फिर भी 
मेरी आँखों में कुछ नमी सी है . 
तू नहीं है तो कोई बात नहीं - 
फिर भी जीवन में एक कमी सी है .

कुछ खुद बीती - कुछ जग बीती 
सभी कहते हैं - मैं परेशां बहूत हूँ .

खो दिया था जहाँ कभी दिले बेज़ार 
चल उसी कूंचे की तरफ फिर एक बार .

फुरसतें फिर तलाश कर लेना 
मुद्दतों में मिले हो - कुछ तो कहो .

बंध गए हम तो बिना बांधे - यार 
प्यार की रेशमी डोरी तोड़ी ना गयी .

हाथ जोड़कर प्रणाम है यारो 
सुबह की राम राम है यारो .
हमें तो फ़ुर्सते ही फुर्सत हैं -
और कोई न काम है यारो .
जो अभी जम गयी कुहासों में 
वो सुबह सबके नाम है यारो .

हुई मुद्दत के अब कुछ याद नहीं - पर 
इससे पहले भी कहीं हम मिलें हैं यार .

कहीं से कोई तो आये तसल्ली देने 
अब ये रात अकेले नही कट पायेगी .

सितारे गिनते हुए छत से गिरे ख्वाब कई .
ये कौन ले गया ख्वाबों के संग नींद मेरी .

ना खोये रहो इस कदर ख्यालों में यार 
दूसरा भी कोई यहाँ है - ये ध्यान रहे .

प्यार कुछ और चीज है शायद
मगर ये प्यार - हो सकता नहीं . 
जिस्म से होके जो पहुंचे दिल तक 
रास्ता रूह का - वो यार हो सकता नहीं .

कल तक तुझको सब कहते थे - खुद़ा 
अब महूब्ब्त को लोग खुद़ा कहते हैं .

जहाँ पहुँच के कभी लौट के आया ना कोई
मिल गयी जिसको जन्नत या महूब्ब्त यारो .

फिर वही उजाड़ शामें - खो गयी कुहासों में 
जले यादों के अलाव जाने बुझ गए कब के .

खुद पे हंसने का हुनर याद आया 
मेरे हालात पे जब भी कोई मुस्काया .

तेरे अहसास की कलम से - दिलपे लिखता हूँ मिटाता हूँ .
रौशनी हमसे दूर रहती है - फिर वहीँ हाशिये पे आता हूँ .

कौशिश जो करो तो - क्या हो नहीं सकता 
एक दिन जमीं पे उतर आएगा बैरी चाँद .

आ जाओ तुम फलक से उतरकर ऐ मेरे चाँद 
तुमको छुपा लूं दिल में - बाहर ठण्ड है बहूत .

कुछ लोग मिल गए मगर - कुछ लोग खो गए 
किसको तलाशा यार  - जाने किसके हो गए .

नहीं आना तो मत आओ 
अब तेरा इंतज़ार  नहीं . 
बस ये ना पूछना - हमसे 
की तुमसे प्यार  नहीं .




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