हो भले सारी खुदाई -
कम नहीं है .
क्या करूँ दुनिया का -
जिसमे हम नहीं हैं .
उत्तरदायी कौन है - चल अब करें ये फैसला
सबकी ऊँगली उठ रही है - आज खुद की ही तरफ .
दीप तो बुझ जाएगा पर रौशनी जिन्दा रहे
आओ मिलकर - दीप से दीप जलाएं यारो .
रूकती है ठिठकती है - मगर हारती नहीं
कोई कांग्रेसी दाव नहीं होती जिन्दगी .
दिल ना जाने मुझसे अब चाहता क्या है
रात के सपनो का शूल अब तक गड़ा है .
मेरा आज - मेरे बीते कल से बहूत बड़ा है
जो आने वाले कल का हाथ थामे खड़ा है .
रुकेगा नहीं - रोका तो बहूत
सबने मिल टोका भी बहूत
हमारा जो है रुकेगा नहीं -
अब 'तेरा' ही आएगा जो
किसी शय के सामने -
झुकाए से भी झुकेगा नहीं .
जब तक पीर जिन्दा है -
तब तक 'मीर' जिन्दा है .
ग़मों को छोड़ने - बहूत
दूर मत जाना - ना जाने
कब कमी अखरने लगे .
सुखों का क्या भरोसा - यार
ना जाने कब तलक साथ रहें
और कब मरने लगे .
कविता चन्द शब्दों की कलाकारी है
भाव तेरे हैं अपनी बस अदाकारी है .
हरेक हर्फ़ - तेरी शय को बयाँ करता है
रोशनाई मेरी - पर रौशनी तुम्हारी है .
रंज गम पास ना आये तो अच्छा है
ख़ुशी भी दूर ना जाए तो अच्छा है
पर कभी रूठों न अपनी ख़ुशी से .
जो रूठ जाए ख़ुशी तो क्या है .
वो प्यार था ही नहीं - जो कभी मिला ही नहीं .
ना कोई अदावत - किसी से गिला ही नहीं .
आदत थी यार अकेले चलने की - सच
वो लम्बा रास्ता - कभी खला ही नहीं .
आज कुछ ठण्ड बहूत है -
चलो-अलावों को जलाया जाए
या आज की शाम को फिर
तेरी यादों से सजाया जाए .
वो जो सड़कों पे 'पर' साथ लिए बैठे हैं
उड़ने को तत्पर परवाज़ लिए बैठे हैं .
एक वो हैं पिंजरे सैंयाद लिए बैठे हैं
बड़े शातिर - हमारा आज लिए बैठे हैं .
जिन्दगी तेरे नाजो अदा - क्या कहने
फटी बिवाइयाँ तूने कभी सिली भी नहीं .
बहूत ढूंडा तुझे दिन रात - जिन्दगी
तू मिली भी और कभी मिली भी नहीं .
तमाम उम्र नफरतों के सर्द सायों में रहे
प्यार की हरारत यूँ कभी मिली ही नहीं .
दूर से इशारों में बात होती रही - हर बार
कभी करीब से ये जिन्दगी मिली ही नहीं .
प्रेमका रोग लगे तो - मर्ज कभी ठीक ना हो
रिस्ते जख्मों की अपनी ही कसक है यारो .
बात कुछ ख़ास नहीं है - फिर भी
मेरी आँखों में कुछ नमी सी है .
तू नहीं है तो कोई बात नहीं -
फिर भी जीवन में एक कमी सी है .
कुछ खुद बीती - कुछ जग बीती
सभी कहते हैं - मैं परेशां बहूत हूँ .
खो दिया था जहाँ कभी दिले बेज़ार
चल उसी कूंचे की तरफ फिर एक बार .
फुरसतें फिर तलाश कर लेना
मुद्दतों में मिले हो - कुछ तो कहो .
बंध गए हम तो बिना बांधे - यार
प्यार की रेशमी डोरी तोड़ी ना गयी .
हाथ जोड़कर प्रणाम है यारो
सुबह की राम राम है यारो .
हमें तो फ़ुर्सते ही फुर्सत हैं -
और कोई न काम है यारो .
जो अभी जम गयी कुहासों में
वो सुबह सबके नाम है यारो .
हुई मुद्दत के अब कुछ याद नहीं - पर
इससे पहले भी कहीं हम मिलें हैं यार .
कहीं से कोई तो आये तसल्ली देने
अब ये रात अकेले नही कट पायेगी .
सितारे गिनते हुए छत से गिरे ख्वाब कई .
ये कौन ले गया ख्वाबों के संग नींद मेरी .
ना खोये रहो इस कदर ख्यालों में यार
दूसरा भी कोई यहाँ है - ये ध्यान रहे .
प्यार कुछ और चीज है शायद
मगर ये प्यार - हो सकता नहीं .
जिस्म से होके जो पहुंचे दिल तक
रास्ता रूह का - वो यार हो सकता नहीं .
कल तक तुझको सब कहते थे - खुद़ा
अब महूब्ब्त को लोग खुद़ा कहते हैं .
जहाँ पहुँच के कभी लौट के आया ना कोई
मिल गयी जिसको जन्नत या महूब्ब्त यारो .
फिर वही उजाड़ शामें - खो गयी कुहासों में
जले यादों के अलाव जाने बुझ गए कब के .
खुद पे हंसने का हुनर याद आया
मेरे हालात पे जब भी कोई मुस्काया .
तेरे अहसास की कलम से - दिलपे लिखता हूँ मिटाता हूँ .
रौशनी हमसे दूर रहती है - फिर वहीँ हाशिये पे आता हूँ .
कौशिश जो करो तो - क्या हो नहीं सकता
एक दिन जमीं पे उतर आएगा बैरी चाँद .
आ जाओ तुम फलक से उतरकर ऐ मेरे चाँद
तुमको छुपा लूं दिल में - बाहर ठण्ड है बहूत .
कुछ लोग मिल गए मगर - कुछ लोग खो गए
किसको तलाशा यार - जाने किसके हो गए .
नहीं आना तो मत आओ
अब तेरा इंतज़ार नहीं .
बस ये ना पूछना - हमसे
की तुमसे प्यार नहीं .
कम नहीं है .
क्या करूँ दुनिया का -
जिसमे हम नहीं हैं .
उत्तरदायी कौन है - चल अब करें ये फैसला
सबकी ऊँगली उठ रही है - आज खुद की ही तरफ .
दीप तो बुझ जाएगा पर रौशनी जिन्दा रहे
आओ मिलकर - दीप से दीप जलाएं यारो .
रूकती है ठिठकती है - मगर हारती नहीं
कोई कांग्रेसी दाव नहीं होती जिन्दगी .
दिल ना जाने मुझसे अब चाहता क्या है
रात के सपनो का शूल अब तक गड़ा है .
मेरा आज - मेरे बीते कल से बहूत बड़ा है
जो आने वाले कल का हाथ थामे खड़ा है .
रुकेगा नहीं - रोका तो बहूत
सबने मिल टोका भी बहूत
हमारा जो है रुकेगा नहीं -
अब 'तेरा' ही आएगा जो
किसी शय के सामने -
झुकाए से भी झुकेगा नहीं .
जब तक पीर जिन्दा है -
तब तक 'मीर' जिन्दा है .
ग़मों को छोड़ने - बहूत
दूर मत जाना - ना जाने
कब कमी अखरने लगे .
सुखों का क्या भरोसा - यार
ना जाने कब तलक साथ रहें
और कब मरने लगे .
कविता चन्द शब्दों की कलाकारी है
भाव तेरे हैं अपनी बस अदाकारी है .
हरेक हर्फ़ - तेरी शय को बयाँ करता है
रोशनाई मेरी - पर रौशनी तुम्हारी है .
रंज गम पास ना आये तो अच्छा है
ख़ुशी भी दूर ना जाए तो अच्छा है
पर कभी रूठों न अपनी ख़ुशी से .
जो रूठ जाए ख़ुशी तो क्या है .
वो प्यार था ही नहीं - जो कभी मिला ही नहीं .
ना कोई अदावत - किसी से गिला ही नहीं .
आदत थी यार अकेले चलने की - सच
वो लम्बा रास्ता - कभी खला ही नहीं .
आज कुछ ठण्ड बहूत है -
चलो-अलावों को जलाया जाए
या आज की शाम को फिर
तेरी यादों से सजाया जाए .
वो जो सड़कों पे 'पर' साथ लिए बैठे हैं
उड़ने को तत्पर परवाज़ लिए बैठे हैं .
एक वो हैं पिंजरे सैंयाद लिए बैठे हैं
बड़े शातिर - हमारा आज लिए बैठे हैं .
जिन्दगी तेरे नाजो अदा - क्या कहने
फटी बिवाइयाँ तूने कभी सिली भी नहीं .
बहूत ढूंडा तुझे दिन रात - जिन्दगी
तू मिली भी और कभी मिली भी नहीं .
तमाम उम्र नफरतों के सर्द सायों में रहे
प्यार की हरारत यूँ कभी मिली ही नहीं .
दूर से इशारों में बात होती रही - हर बार
कभी करीब से ये जिन्दगी मिली ही नहीं .
प्रेमका रोग लगे तो - मर्ज कभी ठीक ना हो
रिस्ते जख्मों की अपनी ही कसक है यारो .
बात कुछ ख़ास नहीं है - फिर भी
मेरी आँखों में कुछ नमी सी है .
तू नहीं है तो कोई बात नहीं -
फिर भी जीवन में एक कमी सी है .
कुछ खुद बीती - कुछ जग बीती
सभी कहते हैं - मैं परेशां बहूत हूँ .
खो दिया था जहाँ कभी दिले बेज़ार
चल उसी कूंचे की तरफ फिर एक बार .
फुरसतें फिर तलाश कर लेना
मुद्दतों में मिले हो - कुछ तो कहो .
बंध गए हम तो बिना बांधे - यार
प्यार की रेशमी डोरी तोड़ी ना गयी .
हाथ जोड़कर प्रणाम है यारो
सुबह की राम राम है यारो .
हमें तो फ़ुर्सते ही फुर्सत हैं -
और कोई न काम है यारो .
जो अभी जम गयी कुहासों में
वो सुबह सबके नाम है यारो .
हुई मुद्दत के अब कुछ याद नहीं - पर
इससे पहले भी कहीं हम मिलें हैं यार .
कहीं से कोई तो आये तसल्ली देने
अब ये रात अकेले नही कट पायेगी .
सितारे गिनते हुए छत से गिरे ख्वाब कई .
ये कौन ले गया ख्वाबों के संग नींद मेरी .
ना खोये रहो इस कदर ख्यालों में यार
दूसरा भी कोई यहाँ है - ये ध्यान रहे .
प्यार कुछ और चीज है शायद
मगर ये प्यार - हो सकता नहीं .
जिस्म से होके जो पहुंचे दिल तक
रास्ता रूह का - वो यार हो सकता नहीं .
कल तक तुझको सब कहते थे - खुद़ा
अब महूब्ब्त को लोग खुद़ा कहते हैं .
जहाँ पहुँच के कभी लौट के आया ना कोई
मिल गयी जिसको जन्नत या महूब्ब्त यारो .
फिर वही उजाड़ शामें - खो गयी कुहासों में
जले यादों के अलाव जाने बुझ गए कब के .
खुद पे हंसने का हुनर याद आया
मेरे हालात पे जब भी कोई मुस्काया .
तेरे अहसास की कलम से - दिलपे लिखता हूँ मिटाता हूँ .
रौशनी हमसे दूर रहती है - फिर वहीँ हाशिये पे आता हूँ .
कौशिश जो करो तो - क्या हो नहीं सकता
एक दिन जमीं पे उतर आएगा बैरी चाँद .
आ जाओ तुम फलक से उतरकर ऐ मेरे चाँद
तुमको छुपा लूं दिल में - बाहर ठण्ड है बहूत .
कुछ लोग मिल गए मगर - कुछ लोग खो गए
किसको तलाशा यार - जाने किसके हो गए .
नहीं आना तो मत आओ
अब तेरा इंतज़ार नहीं .
बस ये ना पूछना - हमसे
की तुमसे प्यार नहीं .
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