स्मृति की परछाइयों में
आम की अमराइयों में
प्रेम की गहराइयों में
गीत की तन्हाइयों में
मन ना जाना तुम अकेले .
याद के वन - जल उठेंगे
चीड से नाजुक तने - और
आंधियां चलती यहाँ हैं -
इन अँधेरी कंदराओं में -
आम की अमराइयों में
प्रेम की गहराइयों में
गीत की तन्हाइयों में
मन ना जाना तुम अकेले .
याद के वन - जल उठेंगे
चीड से नाजुक तने - और
आंधियां चलती यहाँ हैं -
इन अँधेरी कंदराओं में -
मन ना जाना तुम अकेले .
बच ना पायी - वो जली थी
शीतल- छिटकती चांदनी में
वो पली थी - एक नाजुक
अधखिली सी वो कलि थी .
भीड़ और कोलाहलों में -
मन ना जाना तुम अकेले .
बच ना पायी - वो जली थी
शीतल- छिटकती चांदनी में
वो पली थी - एक नाजुक
अधखिली सी वो कलि थी .
भीड़ और कोलाहलों में -
मन ना जाना तुम अकेले .
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