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Friday, October 19, 2012

वंस मोर

बहूत काम हैं - यार
और - वक्त है कम .

कितनो से मिलना है -
कितनो को बुलाना है .
किस किससे मिलने -
जाने कितनी- कितनी 
बार कहाँ कहाँ जाना है . 

जाने कितनी आशाएं - 
अपनों को भेजनी हैं .
तुम्हारी मनोहारी -
स्मृतियाँ मन में -
छुपानी सहेजनी हैं .

छोटी पड़ती जा रही है
ये जीवन की डोर - काश
कालको नहीं मिलता इसका -
उलझा हुआ दूसरा छोर .

अन्धकार ना छाता कभी
प्रकाश बना रहता - चारोँ ओर
हमेशा रहती मेरी सनातन भौर .
कह उठती जिन्दगी - एक बार
फिर वन्स मोर - वंस मोर .

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