तेरी आवाज़ - आज तक
कानों में गूंजती है - पूरी फिजा
धरती का हर कोना .
इतनी सी गुज़ारिश है
मेरे ना सही -यार पर
किसी और के भी मत होना .
तेरा जिक्र आते ही - दोस्त
आँखें नाम- मन मयूर नाचता
तन का रोम रोम गाता है
कानों में गूंजती है - पूरी फिजा
धरती का हर कोना .
इतनी सी गुज़ारिश है
मेरे ना सही -यार पर
किसी और के भी मत होना .
तेरा जिक्र आते ही - दोस्त
आँखें नाम- मन मयूर नाचता
तन का रोम रोम गाता है
पता नहीं कौन है तू -
सब लोग कहते हैं तू विधाता है .
किसे क्या भाता हैं -
नहीं मालूम - पर
मुझे तो रात - दिन
शाम के सिंदूरी साये में
प्रभात - की वेला में
बस तू ही तू नज़र आता है .
तुझे आज तक - ठीक से
मैं कभी जान नहीं पाया .
तू पूरी तरह से मुझे अपना -
कभी मान नहीं पाया .
पर मेरी हर घडी हर पल - जैसे
चीत्कार कर - कह रही हैं .
तुझसे अलग होने का संताप
हम ही तो सह रहीं हैं .
सब लोग कहते हैं तू विधाता है .
किसे क्या भाता हैं -
नहीं मालूम - पर
मुझे तो रात - दिन
शाम के सिंदूरी साये में
प्रभात - की वेला में
बस तू ही तू नज़र आता है .
तुझे आज तक - ठीक से
मैं कभी जान नहीं पाया .
तू पूरी तरह से मुझे अपना -
कभी मान नहीं पाया .
पर मेरी हर घडी हर पल - जैसे
चीत्कार कर - कह रही हैं .
तुझसे अलग होने का संताप
हम ही तो सह रहीं हैं .
Adorable poem sir....
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