खंडहर - बियाबान
वो अतीत के - जंगल
मेरे मन के अँधेरे - कोने
अक्सर अनछुए रह जाते हैं .
लोग मुझे अपना -
कहते - बताते हैं .
पर अपनेपन के - स्पर्श
किन्हीं हाथों में - आज भी
नज़र क्यों नहीं आते हैं .
क्या अपनापन - बस
केवल भाव है - लगता है
अपनेपन में भी 'अपने'
का कितना अभाव है .
अपनेपन की तलाश में - हम
कितने अपने से ही रह जाते हैं .
वो अतीत के - जंगल
मेरे मन के अँधेरे - कोने
अक्सर अनछुए रह जाते हैं .
लोग मुझे अपना -
कहते - बताते हैं .
पर अपनेपन के - स्पर्श
किन्हीं हाथों में - आज भी
नज़र क्यों नहीं आते हैं .
क्या अपनापन - बस
केवल भाव है - लगता है
अपनेपन में भी 'अपने'
का कितना अभाव है .
अपनेपन की तलाश में - हम
कितने अपने से ही रह जाते हैं .
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