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Tuesday, June 11, 2013

उठ रहा नभ में धुंआ सा देखिये

उठ रहा नभ में धुंआ सा देखिये 
हर तरफ फैला कुहासा देखिये 
सामने गहरी खुदीं हैं खाइयाँ 
और पीछे है कुआँ सा देखिये .

पतझरों का दौर बीती बात है 
फूल ही बस फूल हैं बिखरे हुए
जहाँ तक भी यार जाती है नजर -
पात सूखे देखिये निखरे हुए .

आज कुदरत का तमाशा देखिये
पेड़ खुद फल अपने खाता देखिये .
आदमी मजबूर है मगरूर भी
आज बन्दर का तमाशा देखिये .


बाँध के जिनके किनारे वास हैं 

घर बना उनका कुआँ सा देखिये 
प्यास सागर की कभी बुझती नहीं  

आज नदियों को भी प्यासा देखिये .

बारिशों की बूँद से राहत नहीं
बादलों का झुण्ड आता देखिये
क्षीर सागर में प्रभु का वास है
आदमी है फिर भी प्यास देखिये .

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