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Saturday, June 29, 2013

अधूरी अतृप्त सी - मन की वासनाएं

अधूरी अतृप्त सी - 
मन की वासनाएं 
फूलों पर मंडराती 
रूपमती इच्छाएं -
तितली सी - घूमती 
मादक हवाएं - 
मन ये सोचता हैं यहीं रुकें -
या कहीं आगे निकल जाएँ .

हर बरस - बिन बरसे 
आगे चली जाती हैं
ये - काली घटाएं .
कुछ याद हैं तुम्हें - या
हम भी भूल जाएँ .

हो जाता है मन छिज्जा
पसीजा सा - हथेली
भीगने लगती हैं -
दिल चाहता है - ये
बादल अब ना बरसें -
विरही मन अब ना तरसे .

पर फिर - लौट आती हो
दूर जाकर - पास आकर
ये निर्दयी सावन - धुप से
अठखेलियाँ करते ये बादल
और मन में छिपी हुई - सी
कहीं तुम - या
फिर कोई नहीं .

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