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Monday, June 3, 2013

इसी मिटटी में उगूँ मैं

सुबह मादक है मगर कुछ 
मुश्किलों का ध्यान भी है .
गल रहा ठंडी सिला पर 
जिस्म भी है प्राण भीं है .

एक मैं अभिशप्त तो क्या 
सकल जगत जहान भी है 
मूर्ति पूजी गयीं हैं -
पत्थरों में प्राण भीं है 

गीत भी है गान भी - 
मधुर जिसकी तान भी है 
गा सकें जो देशवासी - 
देश का सम्मान भी है .

मुल्क होंगे बहूत से पर 
भारत देश महान ही है .
जिसमें बसती है सदा ही
आत्मा भी जान भी है . 

इल्तिजा है उस खुदा से 
हुक्म चलने का मिले तो 
मिलूँ तेरी ख़ाक में मैं 
फिर बुलाये जो - धरा पर
इसी मिटटी में उगूँ मैं .

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