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Tuesday, September 13, 2011

मैं सुंदर नहीं हूँ .

आन्तरिक सौन्दर्य भले हो.
कला कौशल भी होगा -
पर जानता हूँ ये बात की 
मैं सुंदर नहीं हूँ .

कभी कभी इर्ष्या होती है
देखकर कोई -
सुंदर चेहरा जो -
दिखा देता है मुझे आइना
जैसे मौन में भी
कह जाता है - 
तुम सुंदर नहीं हो .

एक दिन मैंने -
उससे कहा -
तू भी तो काला है .
पर कितने बड़े
दिल वाला है.

कितने सुंदर
असुंदर को समेटे
अपने आप से लपेटे  -
कितना मेहरबान है -
सारी दुनिया -
पूरा ब्रह्माण्ड जानता है -
तू ही तो भगवान है .

उसने कहाँ चन्दन में
भले होगी सुगंध-पर
उससे तो लिपटे रहते हैं -भुजंग.
वो चन्दन आखिर -किसके
काम आता है - अरे पगले
सुबह शाम - बिन नागा 
मुझ जैसे काले को ही तो
लगाया जाता है .
 
ऐसे रंग का क्या करेगा -
जिस जल को कोई पी ना सके  -
आखिर तूझे क्या मिलेगा .
ऐसा सागर - बनकर.
तृप्त कर लोगों की प्यास  -
मैली माटी की सही -
गागर बन कर .

तुझे मैंने अपने जैसा
तो बनाया है -
और हर युग में तू ही तो
मेरे काम आया है .

गंगा चाहे मैली हो - पर
लाखों की प्यास बुझाती है
मरने पर यहीं से मोक्ष देती है -
और सबके काम आती है .

क्या फर्क पड़ता है - जो तू रंग
का काला है - अरे काले तो
कृष्ण और राम थे -
उनसे सुंदर होने के क्या -
किसी और के पास भी
कोई प्रमाण थे .

 

1 comment:

  1. ऐसे रंग का क्या करेगा - जिस
    जल को कोई पी ना सके -
    आखिर तूझे क्या मिलेगा .
    ऐसा सागर - बनकर.
    तृप्त कर लोगों की प्यास - मैली
    माटी की सही - गागर बन कर . aap ne mere man ke bhawo ko shabdo ka bana diya ,sundar rachana badhayi

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