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Friday, April 15, 2011

बैसाखियों के सहारे जो

बैसाखियों के सहारे जो  -
घर से निकलते हैं -
यकीन मान -
वे बहूत दूर नहीं चलते हैं .

वे मस्तक कभी सम्मान से -
कहाँ उठा पाते हैं -
हम अपना अस्तित्व -
आखिर क्यों खोना चाहते हैं.

वे शासन के शरणागत-  नहीं होते
उनके द्वारा तो  -फरसे से
आततायी राजाओं के -
सर काटे जाते हैं .

तू बुझदिल -कमजोर नहीं है
आँधियों में तनकर खड़ा हो -
अपने कद से और-बड़ा हो 
अपना सहारा आप बन .

(ब्राह्मणों को आरक्षण मांगने के सन्दर्भ में )

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