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Saturday, March 30, 2013

दोहे

ये ईश्वर का देश है
नौ निध बारा सिद्ध
कव्वे तो मिल जायेंगे
नहीं मिलेंगे गिद्ध

सबके सब हैं देवता
नहीं जरा भी फर्क
सबके अपने स्वर्ग हैं
अपने अपने नर्क .

देश भले के नाम पर
निकले घर से लोग
गद्दी नहीं नसीब में
ना कोई ऐसा जोग .

पुरवैया के झोक से
पर्वत धक्के खाए .
चले भीड़ जो साथ में
वो ठाडो हो जाए .

ना आना इस देश में
लाडो अबकी बार .
सासरिये रह मौज से
दोनों पाँव पसार .
(इटली का सोनिया से अनुरोध)

देश हितों के नाम पर
करले प्यारे मौज .
गद्दी से हटते ससुर
लेंगे तुझ को खोज .


सस्ता इसे ना जानिये
इनका भारी रेट .
नेताजी का ना भरे
सागर जैसा पेट .

खंजर रखना जेब में 
नयन कटारी धार .
कोई तुझको मार दे 
तू - उससे पहले मार .

लूट लूट घर भर लिया 
बचा ना एक छदाम .
बची लंगोटी खींचते 
सत्ता के हज्जाम .

भौंक भौंक कर थक गए 
सब सत्ता के चोर .
एक गया - दूजा ससुर 
जाने कितने और .

एक टिकट दिलवा सखा 
देश भक्ति है फर्ज .
सात पीढ़ी बेफिक्र हों 
क्या फिर इसमें हर्ज़ .

बारह महीने और बरस चार 
ये मियादी बुखार यार 
चढ़ता नेता को एक बार 
'मत' मतदे ना तू बार बार .

इंग्लिश नीति पढ़ गए 
कौए सीढ़ी चढ़ गए .
असली स्वराजी कहीं 
तस्वीरों में जड़ गए .

कौए सारे पढ़ गए 
हंस रह गए टन्ट *
चुग चुग मोती खा गए 
सत्ताधारी महंत .
(टन्ट = अनपढ़ / गंवार)

जिगरा मेरा देखिये 
मिटा ना रावण राज 
वोट डालने का फकत 
सिंगल अपना काज .

जीतेगा कोई नहीं - 
सभी गए हैं हार 
चाहे अनशन बैठ ले - 
चाहे ठानो रार .

रावण ज़िंदा है अभी - नहीं मरा है कंस 
ये स्वदेसी राज अब लगने लगा कलंक .

रै बटेऊ सालभर में - और किन्ना खा लेगी 
या खाऊ पिऊ सरकार तो अयाँ ही चालेगी .
(बटेऊ - दामाद , अयाँ - ऐसे ही )

चक्रव्यूह में फंस गए - ना अंदर ना बाहर 
मोह बसा है पार्थ में - कैसे करे प्रहार .

थकके सबने रख दिए - अपने अपने तीर 
वोटों से कब बदलती - भारत की तकदीर .



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