खुदा का शुक्र था -
किश्तों में गम मिले
वर्ना ये जिन्दगी कब की
खर्च हो गयी होती .
मौ सम मूढ़ ना तुम सम ज्ञानी
जगत चतुर - नहीं कोई सानी
दुनिया को क्या बिरद बतानी
हंसती पीर ना जाए पिछानी .
अपनी बरसों बरस चलेगी
नहीं झूठ ना कोई ठिठोली .
अपनी होली तो जारी है
सबकी होली कब की होली .
भ्रम में आजादी के माने ढूँढता रहा
मिला भी तो - जालिम बेपता निकला .
दो चार गिरह कोई मायने नहीं रखते
यहाँ तो पूरा थानही यारो फटा निकला .
सुबह से शाम हुई -
और दिन ढल गया .
रंगों का त्यौहार भी - यार
बिना रंगे निकल गया .
मिले हैं रंग - नहीं दिल तंग
ना कोई भांग ना कोई भंग
सभी के तो अगणित रंग
मेरे सारे रंग 'कारे' के संग .
सतरंगी सब रंग घूल गए
केवल श्याम बचा है बाकी
ओरों से कुछ काम नहीं बस
हाथ जोड़ बाकी से माफ़ी .
वो आ रहें हैं कोई कह जाता
उनका भी मान रह जाता .
और हमारा भी गुमान रह जाता
बिन बरसे चले गए बादल
जो गए उनके घर तो -
वो फिर लौट कर नहीं आते .
अब कभी आओ तो
पहले मत खबर करना .
पक गये हैं हम तेरा
इंतज़ार करते करते .
पिलानी है तो -
घूँट दो चार नहीं
भर पेट पिला यारा
हम भी देखें - तेरी
आँखों में वो पहले सा
नशा है की नहीं .
अपनी कौशिश थी
मामला रफा दफा हो
उनकी कौशिश थी -
मुआ यहाँ से दफा हो .
रंग कुछ और भी हैं
ऐतराज़ ना हो -
तो लगाएं क्या .
दूर से दूर तक -
नहीं दीखता -
इज़ाज़त हो तो -
करीब आयें क्या .
रंग सपनों में भरे जाते हैं
रंग अश्कों से झरे जाते हैं
कुछ घडी को रंग चहरे के
बदलने से क्या होगा यार .
लगाये चेहरों पे कम -
फैलाए ज्यादा
किसी बेरंग जिन्दगी में
भरते तो यार -
बड़ा सबाब मिलता .
रंग की बौछार से थकी सी गुलाल
कड़क बोली भी अब ठंडी होली
हार के बैठ गए चन्दन गुलाल रोली
चलो मनाये फिर से यार -
होली के बाद इक और होली .
रंग खुशियों का ऐसा हो छूटे नहीं
कोई अपना कभी तुमसे रूठे नहीं
होली होली जो होली उसे भूल जा
उड़े गुलाल - अबीर सहस्र रंग
अबके मिले कोई होली में
आये ख़ुशी सा ना जाए कभी
ऐसे खिले रंग होली में .
मौन में भी - जाने
ये मन क्या गाता है
निर्जन में भी - जाने
दूर कोई गीत सा
गुनगुनाता है .
चलो कुछ ढूँढ़ते हैं -
सच की सपने .
पराये की अपने .
ना जाने क्या चाहता है
मन उद्विग्न अशांत
आज ना जाने क्यों .
ना पूरा भरा हूँ -
ना आधा खाली हूँ
फिर भी ना जाने
आज क्यों सवाली हूँ .
कोई आएगा नहीं अब किसका इंतज़ार है
तन्हाईयाँ चौखट पे खड़ी आने को तैयार हैं
बात इतनी सी की बात कुछ भी नहीं
तेरे पढने का सबब फिर भी है यार
मेरे लिखने का सबब कुछ भी नहीं .
बेसबब कभी किसी का भी हुआ जाता है -
इस दिल को समझाएं तो समझाएं कैसे .
तुम्हारी याद भी
मौसम की तरह आती है
सर्दी गर्मी - कभी बरसात
कभी बेमौसम भी बरस जाती है .
सँभालते सहेजते भी जो बिगड़ जाते हैं
ये मन के रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं .
वो जब पास नहीं होते - सच कहूं यारो
वो तब मेरे दिल के सबसे करीब होते हैं .
नहीं दो चार लफ्जों में
बयां पूरी जुबानी हो .
की जो तेरी कहानी है
वही मेरी कहानी हो .
चाँद तारों से काम चला नहीं
और सूरज कहीं मिला नहीं
पंजे की निशाँ थे हर गाल पर
कमल कभी ढंगसे खिला नहीं .
उजड बस जाते हैं आशियाने से
कहाँ मिटते हैं किसी के मिटाने से
तेरी कौशिशें सफल नहीं होंगी
कोई तो सबक ले ज़माने से .
मिल गया होगा कोई सस्ता सा घर
हमारे दिल में वो आजकल नहीं रहते .
दुनिया का क्या है - यूँही कहती है
वो मेरे दिल में जाने कब से रहती है .
दूर होक भी वो दिल के करीब होते हैं
प्यार के रिश्ते भी यार अजीब होते हैं .
थक गयी हैं आस - दिन भी डूबने लगा
जिन्दगी से यार दिल कुछ उबने लगा .
क्या जिन्दगी मिली - अब यार क्या कहे
पैरों में सफ़र था - ना सफ़र कहीं मिला .
पर थक गए थे आस के पंछि के एक रोज़
ना छत मिली कहीं - ना घर कहीं मिला .
महुब्बत की दिलमें क्षीणसी जो रेखा है
आज आ जाओ यार कल किसने देखा है .
रात अपने निशाँन छोड़ गयी
सपनों के वितान छोड़ गयी .
मेहमा थी चली गयी कब की -
एक खाली मकान छोड़ गयी .
सुखों का नाम जिन्दगी
न दुखों का नाम जीवन
पल पल रंग बदलती -
तेज़ धुप में जलते - और
ठिठुरती पाँवो के सफ़र
का नाम ही है जिन्दगी .
किश्तों में गम मिले
वर्ना ये जिन्दगी कब की
खर्च हो गयी होती .
मौ सम मूढ़ ना तुम सम ज्ञानी
जगत चतुर - नहीं कोई सानी
दुनिया को क्या बिरद बतानी
हंसती पीर ना जाए पिछानी .
अपनी बरसों बरस चलेगी
नहीं झूठ ना कोई ठिठोली .
अपनी होली तो जारी है
सबकी होली कब की होली .
भ्रम में आजादी के माने ढूँढता रहा
मिला भी तो - जालिम बेपता निकला .
दो चार गिरह कोई मायने नहीं रखते
यहाँ तो पूरा थानही यारो फटा निकला .
सुबह से शाम हुई -
और दिन ढल गया .
रंगों का त्यौहार भी - यार
बिना रंगे निकल गया .
मिले हैं रंग - नहीं दिल तंग
ना कोई भांग ना कोई भंग
सभी के तो अगणित रंग
मेरे सारे रंग 'कारे' के संग .
सतरंगी सब रंग घूल गए
केवल श्याम बचा है बाकी
ओरों से कुछ काम नहीं बस
हाथ जोड़ बाकी से माफ़ी .
वो आ रहें हैं कोई कह जाता
उनका भी मान रह जाता .
और हमारा भी गुमान रह जाता
बिन बरसे चले गए बादल
जो गए उनके घर तो -
वो फिर लौट कर नहीं आते .
अब कभी आओ तो
पहले मत खबर करना .
पक गये हैं हम तेरा
इंतज़ार करते करते .
पिलानी है तो -
घूँट दो चार नहीं
भर पेट पिला यारा
हम भी देखें - तेरी
आँखों में वो पहले सा
नशा है की नहीं .
अपनी कौशिश थी
मामला रफा दफा हो
उनकी कौशिश थी -
मुआ यहाँ से दफा हो .
रंग कुछ और भी हैं
ऐतराज़ ना हो -
तो लगाएं क्या .
दूर से दूर तक -
नहीं दीखता -
इज़ाज़त हो तो -
करीब आयें क्या .
रंग सपनों में भरे जाते हैं
रंग अश्कों से झरे जाते हैं
कुछ घडी को रंग चहरे के
बदलने से क्या होगा यार .
लगाये चेहरों पे कम -
फैलाए ज्यादा
किसी बेरंग जिन्दगी में
भरते तो यार -
बड़ा सबाब मिलता .
रंग की बौछार से थकी सी गुलाल
कड़क बोली भी अब ठंडी होली
हार के बैठ गए चन्दन गुलाल रोली
चलो मनाये फिर से यार -
होली के बाद इक और होली .
रंग खुशियों का ऐसा हो छूटे नहीं
कोई अपना कभी तुमसे रूठे नहीं
होली होली जो होली उसे भूल जा
उड़े गुलाल - अबीर सहस्र रंग
अबके मिले कोई होली में
आये ख़ुशी सा ना जाए कभी
ऐसे खिले रंग होली में .
मौन में भी - जाने
ये मन क्या गाता है
निर्जन में भी - जाने
दूर कोई गीत सा
गुनगुनाता है .
चलो कुछ ढूँढ़ते हैं -
सच की सपने .
पराये की अपने .
ना जाने क्या चाहता है
मन उद्विग्न अशांत
आज ना जाने क्यों .
ना पूरा भरा हूँ -
ना आधा खाली हूँ
फिर भी ना जाने
आज क्यों सवाली हूँ .
कोई आएगा नहीं अब किसका इंतज़ार है
तन्हाईयाँ चौखट पे खड़ी आने को तैयार हैं
बात इतनी सी की बात कुछ भी नहीं
तेरे पढने का सबब फिर भी है यार
मेरे लिखने का सबब कुछ भी नहीं .
बेसबब कभी किसी का भी हुआ जाता है -
इस दिल को समझाएं तो समझाएं कैसे .
तुम्हारी याद भी
मौसम की तरह आती है
सर्दी गर्मी - कभी बरसात
कभी बेमौसम भी बरस जाती है .
सँभालते सहेजते भी जो बिगड़ जाते हैं
ये मन के रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं .
वो जब पास नहीं होते - सच कहूं यारो
वो तब मेरे दिल के सबसे करीब होते हैं .
नहीं दो चार लफ्जों में
बयां पूरी जुबानी हो .
की जो तेरी कहानी है
वही मेरी कहानी हो .
चाँद तारों से काम चला नहीं
और सूरज कहीं मिला नहीं
पंजे की निशाँ थे हर गाल पर
कमल कभी ढंगसे खिला नहीं .
उजड बस जाते हैं आशियाने से
कहाँ मिटते हैं किसी के मिटाने से
तेरी कौशिशें सफल नहीं होंगी
कोई तो सबक ले ज़माने से .
मिल गया होगा कोई सस्ता सा घर
हमारे दिल में वो आजकल नहीं रहते .
दुनिया का क्या है - यूँही कहती है
वो मेरे दिल में जाने कब से रहती है .
दूर होक भी वो दिल के करीब होते हैं
प्यार के रिश्ते भी यार अजीब होते हैं .
थक गयी हैं आस - दिन भी डूबने लगा
जिन्दगी से यार दिल कुछ उबने लगा .
क्या जिन्दगी मिली - अब यार क्या कहे
पैरों में सफ़र था - ना सफ़र कहीं मिला .
पर थक गए थे आस के पंछि के एक रोज़
ना छत मिली कहीं - ना घर कहीं मिला .
महुब्बत की दिलमें क्षीणसी जो रेखा है
आज आ जाओ यार कल किसने देखा है .
रात अपने निशाँन छोड़ गयी
सपनों के वितान छोड़ गयी .
मेहमा थी चली गयी कब की -
एक खाली मकान छोड़ गयी .
सुखों का नाम जिन्दगी
न दुखों का नाम जीवन
पल पल रंग बदलती -
तेज़ धुप में जलते - और
ठिठुरती पाँवो के सफ़र
का नाम ही है जिन्दगी .
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