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Sunday, March 10, 2013

क्षणिकाएं

क्यों करें उनसे शिकायत
ठीक है बस .
खूब है उनकी इनायत
ठीक है बस .


हवा के पंख उड़ाते हैं 
उम्मीदों को आस्मां में 
और इरादे टकरा रहे हैं 
पर्वत के सरों से .

करता तो है वही मगर 
कोई इल्जाम नहीं है .
ज़िंदा को मारना ही - 
क्या मौत को बचा 
और कोई काम नहीं है .

अभी तू भी परेशाँ हैं
अभी मैं भी परेशाँ हूँ 
बचा फिर कौन बाकी 
जब परेशानी परेशा है .

अभी ना वक्त आया है 
ना ऐसा वक्त आएगा 
हमीं सब सूरमा होंगे 
वतन भारत कहायेगा .

ना आएगा यहाँ कोई
ना वापिस लौट पायेगा
बड़ा मोटा सा ताला है
लगा है गेट पर यारो .


ना घर था - ना कोई अपना 
ना बीवी थी ना बच्चे थे .
बसे हम क्यों यहाँ यारो .
मुसाफिर थे तो अच्छे थे .

झूकी झूकी सी जमीं 
ये बुलंद ऊँचा आसमा
तू जहाँ हम वहां -
बिन तेरे हमने रहना कहाँ .

बड़ी मुश्किल से मिलते हैं 
जो दिल के पास होते हैं 
कभी टूटे नहीं ऐसी वो 
अद्भूत आस होते हैं .

















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