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Monday, September 19, 2011

अब ऐसी भी क्या जल्दी

अब ऐसी  भी क्या जल्दी  -
किश्तों में धीरे धीरे मरते हैं .
जीना कोई मजाक नहीं है - यार
जाने दो  - टुकड़ों में ही सही
हर पल आत्महत्या करते हैं .

क्या कहा - हम जिन्दा है .
हम तो वैसे भी - अपनी इस
बेहाल जिन्दगी पर शर्मिंदा है .
क्यों - दुखते घावों को कुरेदते हो .
अब संदेह की नजर से -हरएक
इंसान को क्यों देखते हो .

अभी मैं पिछले पल में ही
तो मरा था - फिर भी जिन्दा हूँ.
मौत के इस गंभीर मजाक पर
सच मानिये मैं बेहद शर्मिंदा हूँ .
 
ये अल -सुबह का मजाक नहीं
बीती रात का सच है - जान लो
हम जिन्दा दीखते जरुर हैं - पर
हैं नहीं - अब तो मान लो . 

वैसे भी कौन - जीता है
तेरी जुल्फ के सर होने तक
फ़ना हो जायेंगे सरकार -
हम तुम को खबर होने तक .

हमें झूठे सपनो के -
डरावने सच - मत सुनाइए
किसी रोज रात को नहीं
दिन में चले  आइये.

पर छोडो हटो - जाने दो इससे
तुम्हे क्या फर्क पड़ता है .
तुम्हारी बला से - कोई
कोई जिन्दा रहें - या मरता है . 

1 comment:

  1. खुद तोला न मासा है |

    उसका खेल तमाशा है ||

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