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Saturday, December 10, 2011

इतने 'शायदों' के बीच - एक और शायद .

उफफ्फ्फ्फ़ ...ये
इतने 'शायदों' के बीच -
एक और शायद .

अब बस भी करो -
अंतरे बदल दो - भगवा
ना सही हल्दी से रंग दो -
छोटा - बड़ा या तंग हो - पर
अब चोला बसंती रंग हो .

शायद अन्ना - सुभाष है
ये कैसी बेमेल आस है - ये
इतने दूर के ध्रुव -क्या इतने
पास -पास हैं .

अन्ना को अन्ना ही रहने दो - चाहे
क्षीण सी लहर है - पर इसे यूँही
दोनों किनारों के बीच बहने दो .

जो गाँधी सुभाष ने सहा इन्हें भी
तो थोडा सा सहने दो .
लोगों को क्या है -
लोगों को कहने दो .

1 comment:

  1. अन्ना ने सो रहे युवाओ को फिर से पुकार है ...उन्हें क्या पता अधिकतम युवा कोलाबेरी में छुमाता है ...उनकी नजरो में अन्ना का कहा भी एक भाषण मात्र हो गया है

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