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Friday, November 11, 2011

मजारों पे जलता दीया ढूँढता हूँ

मजारों पे जलता दीया ढूँढता हूँ
हर इंसामें मैं एक खुदा ढूँढता हूँ .

ये आदम की बस्ती - में हमसे हजारों
नहीं मिलता कोई -किसे  मैं पुकारूँ
तुफानो में मैं - नाखुदा ढूँढता हूँ.

सिकंदर बहूत हैं - कलंदर नहीं हैं
प्रभु हो जहाँ ऐसे - मंदिर नहीं हैं.
हूँ भटका हुआ -  रास्ता पूछता हूँ .

ये पीड़ा की कश्ती - मिले ठौर कैसे
इस काली अमा को - मिले भौर कैसे
तारों से  - सुबह  का पता पूछता  हूँ .

जहाँ - में ये मेरा वतन खो गया है.
अभी तो यहीं था - अब ना जाने कहाँ हैं
हर नक़्शे  में - मैं हिन्दुस्तां ढूँढता हूँ .

जो टूटे भ्रम - साथ तुम मेरे आओ
हरेक देशवासी की पीड़ा - बटाओं
मैं कदमो के अपने निशाँ ढूँढता हूँ .
 

 

2 comments:

  1. हर नक़्शे में - मैं हिन्दुस्तां ढूँढता हूँ .
    सुन्दर!

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